Saturday, March 8, 2008

तिरुअनन्तपुरम से एक छोटी रपट


काफ़ी घुमक्कड़ी कर चुका हूं, मनचाही जगहों में केरल बचा हुआ था। आज तीसरा दिन है तिरुअनन्तपुरम में और यकीन मानिए मैं यहां के सिस्टम से बेहद प्रभावित हूं।

चे गुएवारा की मरदाना विश्वविख्यात छवि वाले कलात्मक पोस्टर ऐलान कर रहे हैं कि यहां एस एफ़ आई का एक विराट सम्मेलन चल रहा है।

कोकाकोला और पेप्सी के अलावा तड़क भड़क वाले तमाम मल्टीनेशनल होर्डिंग्स का न दिखाई देना बहुत सुकून पहुंचाता है। न ही सड़क पर एक भी आवारा कुत्ता दिखा न गाय-भैंसें। पान मसाला और गुटखा जैसी वाहियात चीज़ों की प्लास्टिक मालाएं भी नज़र नहीं आईं। भिखारी एक भी नहीं देखा। शराबखा़नों में खूब हल्लागुल्ला था लेकिन वह हिंसा नदारद थी जिसे देखने की अपने यहां आदत पड़ चुकी है।

लॉरी बेकर का घर देखने के बाद बार बार यह खयाल आता रहा कि क्यों हमें अपने संसाधनों के बेहतर इस्तेमाल करने के तरीके विदेशी लोग ही बताया करते हैं और क्यों उन का काम इतना श्रमसाध्य होता है। खैर, बेकर साहब हाल में ही गुज़र चुके हैं। हमें बताया जाता है कि उनकी पत्नी अभी वहीं रहती हैं लेकिन उनसे मिला नहीं जा सकता क्योंकि वे बीमार हैं। शाम को हम ने लॉरी बेकर का डिज़ाइन किया हुआ एक रेस्त्रां देखा। 'इंडियन कॉफ़ी हाउस' की यह इमारत वास्तुशिल्प का नायाब नमूना है। उस बारे में दुबारा कभी।

कोवलम और महासमुद्रम और पुलिंकुड़ी के समुद्रतटों पर भी जीवन काफ़ी ठहरा हुआ लगा और आफ़ताबी गुस्ल करती हुई नीम मलबूस विदेशी हसीनाओं की इफ़रात के बावजूद न किसी को लार टपकाते देखा। हां उनसे कुछ न कुछ खरीद लेने का निवेदन करते इक्का दुक्का लोग थे।

हो सकता है मैं सिर्फ़ सतह देख रहा हूं लेकिन ज़्यादातर हाथों को काम में लगे देखना सुखद है।

फ़िलहाल हम आज यहां से केरल के मशहूर बैकवाटर्स की यात्रा पर निकलेंगे। पहले वरकला फ़िर कोल्लम फिर अलेप्पी फिर त्रिचूर फ़िर ... ।
(फ़ोटो: कोवलम बीच)

8 comments:

चंद्रभूषण said...

सफ़र मुबारक़। रिपोर्टिंग जारी रहे।

दिलीप मंडल said...

आपकी नजर से केरल देखना रोचक रहेगा। तस्वीरें भी साथ हों, तो क्या बात है!

Pankaj Parashar said...

अभी वहां कुछ दिनों तक जमे रहिये भाईजान। चार-पांच साल पहले मैं भी वहां तकरीबन एक हफ्ते तक था, यकीन मानिये आने का दिल नहीं कर रहा था। वहां जाने के बाद कोवलम जाना हालांकि एक औपचारिकता-सा मगर फिर भी आप हो आइये और वक्त मिले तो कन्याकुमारी वहां से बिल्कुल पास में है-जरूर जाइये।

दीपान्शु गोयल said...

बहुत खूब लिखा है आपने । घुमक्कडी के पूरे किस्से का इंतजार रहेगा।

शिरीष कुमार मौर्य said...

मज्जे कर लियो दद्दा केरल में !
त्वाडा हिरिया !

अनामदास said...

केरल से लौटकर मैं इससे कई गुना अधिक अभिभूत था, जनवरी में हम वहाँ गए थे सपरिवार. विश्वास नहीं हो रहा था कि हम अपने भारत में ही हैं..साफ़-सफ़ाई, सुरक्षित माहौल, भद्र और सभ्य लोग, सुबह सुबह कतार में स्कूल जाती लड़कियाँ..हरे खेत, धुले पुंछे लोग..अदभुत अनुशासन, रेलवे कैंटीन से भारत के किसी और हिस्से का खाना अपने तीन साल के बेटे को खिलाने की हिम्मत मैं नहीं कर सकता. वाक़ई तारीफ़ के काबिल हैं केरल के लोग.

siddheshwar singh said...

भाई ,
घाट-घाट का पानी पीओ
और लिखकर हमारी प्यास भी बुझाते रहो

मुनीश ( munish ) said...

thanx fot report. keep sending.