Tuesday, May 13, 2008

आस्थावादी आदमी

पिछले दिनों आपने नाज़िम हिकमत की कुछ कविताएं पढ़ी थीं. आज नाज़िम की एक और कविता पढ़िये

आस्थावादी आदमी

बचपन में उसने कभी मक्खियों के पंख नहीं नोचे
बिल्लियों की दुम में टीन के डब्बे नहीं बांधे उसने
न माचिस की डिबिया में बन्द किये भौंरे
या रौंदी दीमकों की बांबियां

वह बड़ा हुआ
और ये तमाम काम उसके साथ किये गए

मैं उसके सिरहाने पर था जब वह मरा

उसने कहा मुझे एक कविता पढ़्कर सुनाओ
सूर्य और समुद्र के बारे में
परमाणु भट्टियों और उपग्रहों के बारे में
मनुष्य की महानता के बारे में.

2 comments:

लोकेन्द्र बनकोटी said...

Mere liye toh kaafi depressing raha issey padna. Dukhad...

Unknown said...

ये तो बहुत देखी सी लगी - खूब