Wednesday, May 28, 2008

बाहर खड़ी रौशनी और पीटर कुरमान की दो कविताएं

पीटर कुरमान के बारे में मैं नहीं जानता। गूगल और विकीपीडिया से भी मदद नहीं मिलती। दरअसल रांची से प्रकाशित होने वाली मासिक पत्रिका देशज स्वर के बैक कवर पर पीटर कुरमान की दो कविताएं छपी हैं। इस बारे में पत्रिका के संपादक और “समर शेष है”, “मिशन झारखंड” और “टुंडी की ट्रेजेडी” जैसी किताबों के लेखक विनोद कुमार से बात हुई तो उन्होंने बताया कि छात्र-युवा संघर्ष वाहिनी के आंदोलन के दिनों में ये कविताएं उन्हें कहीं मिलीं और उन्होंने अपनी डायरी में उतार लीं। कविताएं आप भी पढ़ें। पीटर कुरमान के बारे में अगर आप जानते हैं तो जरूर बताएं।

कविता – एक

चाहे कुछ भी घटित हो : लिखो
...
अगर तुम्हारे शरीर में अंधकार घिर आता है
तो लिखो उस रौशनी के बारे में
जो बाहर खड़ी इंतजार करती है ...

कविता – दो

यहां हर चीज पेड़ों, टीलों और समुंदर जैसी है
एक निरंतर जड़-चित्र
लेकिन बताओ मैं क्या करूं
जिससे कि
समुंदर कविता में चला आए
और तुम जान सको कितनी नमकीन है यह

1 comment:

Ashok Pande said...

बढ़िया, उम्मीद से भरी और उम्मीद बंधाती कविताएं. पीटर कुरमान के बारे में तो मैं भी कुछ नहीं जानता. शायद कोई साहित्यान्वेषी सहायता करे.