Monday, June 16, 2008

हम मरते थे और पैदा होते जाते थे



सुन्दर ठाकुर की कविता - श्रृंखला 'एक बेरोज़गार की कविताएं' को कबाड़ख़ाने पर बहुत पसन्द किया गया था. भीतर तक हिलाकर रख देने वाली इन कविताओं पर एक दिलचस्प टिप्पणी आई थी. शशि भूषण ने लिखा था: "कृपया इस कविता के पहले लिख दीजिये कि ये कविताएं आपको विचलित कर सकती हैं जैसे न्यूज़ चैनल्स प्रोग्राम के पहले दिखाते हैं..." किसी भी कवि को ऐसी दाद मिलना बहुत मायने रखता है और इससे उसे अपने आगामी लेखन में और ज़्यादा ज़िम्मेदारी बरतने का अहसास होता है. सुन्दर का नया संग्रह शीघ्र छपकर आने को है. अभी के लिये फ़िलहाल आपको पढ़ाता हूं सुन्दर के संग्रह 'किसी रंग की छाया' से एक और कविता:


हमारी दुनिया

चिड़िया हमारे लिये तुम कविता थीं
उनके लिये छटांक भर गोश्त
इसीलिये बची रह गयी
वे शेरों के शिकार पर निकले
इसीलिये छूट गये कुछ हिरण
उनकी तोपों के मुख इस ओर नहीं थे
बचे हुए हैं ज्सीलिये खेत-खलिहान घरबार हमारे
वे जितना छोड़ते जाते थे
उतने में ही बसाते रहे हम अपना संसार

हमने झेले युद्ध, अकाल और भयानक भुखमरी
महामारियों की अंधेरी गुफाओं से रेंगते हुए पार निकले
अपने जर्जर कन्धों पर युगों-युगों से
हमने ही ढोया एक स्वप्नहीन जीवन
क़ायम की परम्पराएं रचीं हमीं ने सभ्यताएं
आलीशान महलों, भव्य किलों की नींव रखी
उनके शौर्य-स्तम्भों पर नक़्क़ाशी करने वाले हम ही थे वे शिल्पकार
इतिहास में शामिल हैं हमारी कलाओं के अनगिन ध्वंसावशेष
हमारी चीख़-पुकार में निमग्न है हमारे सीनों का विप्लव

उनकी नफ़रत हममें भरती रही और अधिक प्रेम
क्रूरता से जनमे हमारे भीतर मनुष्यता के संस्कार
उन्होंने यन्त्रणाएं दीं जिन्हें सूली पर लटकाया
हमारी लोककथाओं में अमर हुए वे सारे प्रेमी
उनके एक मसले हुए फूल से खिले अनगिन फूल
एक विचार की हत्या से पैदा हुए कई-कई विचार
एक क्रान्ति के कुचले सिर से निकलीं हज़ारों क्रान्तियां
हमने अपने घरों को सजाया-संवारा
खेतों में नई फ़सल के गीत गाए
हिरणों की सुन्दरता पर मुग्ध हुए हम

हम मरते थे और पैदा होते जाते थे

5 comments:

आभा said...

एक विचार की हत्या से पैदा हुए कई कई विचार हम मरते थे और पैदा होते जाते थे
सचमुच विचलित करने वाली कविता और बहुत कुछ सोचने को भी.....

विजय गौड़ said...

आज तो कविताएं ही कविताएं पढने को मिल रही है हर ओर, अशोक भाई. प्रियंकर जी के यहां, दखल में और इधर भी. समकालीन हिन्दी कविता की एक तस्वीर बना रही हैं ये सभी. अभी इन्हें ही देखा है आज. आगे देखता हूं.

nadeem said...

बिना शब्द का व्यक्ति क्या कहेगा.
बस वाह......

Udan Tashtari said...

जबरदस्त कविता है....!!!

अनामदास said...

कविताओं से विरक्ति लाइलाज सी हो गई है...आप शायद अच्छी तरह समझ सकते हैं कि ऐसा क्यों हुआ है.

बहुत दिनों बाद एक बेहतरीन कविता पढ़ी है जिसने कविता में दोबारा विश्वास दिलाया है. इसमें इतिहास बोध से लेकर मार्मिकता और संवेदना सब कुछ है. आभारी हूँ. साधुवाद कवि तक पहुँचा दें.