Sunday, September 28, 2008

भारत का रहनेवाला हूं भारत की बात सुनाता हूं


महेन्द्र कपूर नहीं रहे.

कल शनिवार की रात बम्बई में दिल के दौरे की वजह से, चौहत्तर साल की आयु में उनका देहावसान हुआ. वे बीते कुछ दिनों से बीमार चल रहे थे.

९ जनवरी १९३४ को अमृतसर में जन्मे कपूर साहब मोहम्मद रफ़ी की गायकी के बड़े प्रशंसक थे और प्लेबैक सिंगिंग में अपना भाग्य आजमाने १९५० के दशक में बम्बई चले आए थे. बी आर चोपड़ा को उनकी आवाज़ बहुत भाई और उन्होंने महेन्द्र कपूर से 'गुमराह', 'हमराज़', 'धूल का फूल', 'वक़्त' जैसी कालजयी फ़िल्मों के अविस्मरणीय गाने गवाए.

बी आर चोपड़ा के अलावा कई अन्य निर्माता-निर्देशक उनकी आवाज़ के चाहनेवाले थे. जहां उन्होंने मनोज कुमार के लिए 'मेरे देश की धरती सोना उगले' और 'है प्रीत जहां की रीत सदा' जैसे गीतों को स्वर दिया, वहीं 'नवरंग' में 'आधा है चन्द्रमा रात आधी जैसा अमर गीत भी गाया.

मैं उनके गाए मशहूर गानों की फ़ेहरिस्त बनाने या उनका जीवनवृत्त प्रस्तुत करने का जतन नहीं करना चाहता. वह सब आजकल इन्टरनैट पर थोक में पाया जा सकता है. बस इस मौके पर उनकी याद करता हुआ आपको एक पसन्दीदा डूएट सुनाना रहा हूं:



(फ़ोटो: महेन्द्र कपूर व उनके अभिनेता पुत्र रोहन. साभार 'द हिन्दू')

3 comments:

siddheshwar singh said...

श्रद्धांजलि
नमन

MANVINDER BHIMBER said...

महेंद्र कपूर जी के चले जाने से जो क्षति हुई है संगीत जगत में उसकी भरपाई असंभव है...सबने उनके बहुत से प्रसिद्द गानों का जिक्र किया है..जो मुझे भी पसंद हैं..और "चलो एक बार.." तो बहुत ही अधिक लेकिन उनका गाया "ये हवा ये हवा ये हवा, है उदास जैसे मेरा दिल..."और..पुतरा ठंडे ठंडे पानी से नहाना चाहिए"...का जवाब नहीं.
बहुत कमी खलेगी .महेंद्र कपूर को श्रद्धांजलि...

संजय पटेल said...

महेन्द्र कपूर चित्रपट संगीत के अनसंग हीरो थे. रफ़ी साहब का अंदाज़ सिर्फ़ फ़ॉलो ही नहीं किया मन से उनको पूजा भी. इन्दौर में दो तीन बार उनसे मुलाक़ात के अवसर आए.हर बार मैने उन्हें बहुत साफ़ दिल और नेक इंसान पाया. अपने बेटे के करियर को लेकर उनके मन में विशेष चिंताएँ थीं.एक तरह की इनसिक्युरिटि फ़िलिंग भी कह सकते हैं.

जब उन्हें लता पुरस्कार से नवाज़ा गया तो उसी शाम उनका लाइव कंसर्ट भी था जिसे मैंने ही एंकर किया था.साथ ही मैं हमेशा की तरह मेरे शहर के प्रतिष्ठित अख़बार नईदुनिया के लिये उस इवेंट को रिपोर्ट भी कर रहा था. मैने अपने डिस्पैच में उनकी गायकी और उस शो की बहुत सारी बातें लिखीं जिसकी उस दिन पाठकों में ख़ासी अच्छी प्रतिक्रिया रही. उसी दिन अख़बार के प्रबंध संपादक महेन्द्र सेठियाजी का फ़ोन आया और कहने लगे संजय एक नम्बर देता हूँ ज़रा महेन्द्र कपूरजी से मुंबई बात कर लो.मैने फ़ोन घुमाया दूसरी तरफ़ पापाजी(महेन्द्रजी) ही थे .मैने आदाब कहा और पूछा कहें पापाजी मेरे लिये क्या आदेश है.बोले बेटे संजय आज सुबह इन्दौर एयरपोर्ट से नईदुनिया ले ली थी, तुमने बहुत अच्छा लिखा . इतना विस्तार से फ़िल्म संगीत के शो के बारे में कोई नहीं लिखता,मै तुम्हें थैंक्स कहना चाहता था,और एक गुज़ारिश भी करना चाहता था. मैने कहा पापाजी कैसी बात करते हैं आप...कहें तो बोले देखो तुमने मेरे बारे में इतना सारा लिख दिया,दो एक गीत रोहन ने भी गाये थे , उसके बारे में तुमने कुछ नहीं लिखा , वह बड़ी डिप्रेस्ड सा अनुभव कर रहा है,दो शब्द लिख देते तो हौसला बढ़ जाता उसका. महेन्द्र कपूर का स्वर वैसा ही था जैसा एक निश्छल बाप का होता है.

मुझे भी लगा कि महेन्द्र कपूर एक सह्र्दय पिता भी तो हैं , और दूसरे दिन मैने नईदुनिया में मैने रोहन से हुई बातचीत के आधार पर उसके गानों की तारीफ़ भी कर दी. ये वाक़या इतना लम्बा इसलिये लिख गया अशोक भाई कि मैं बताना चाहता था कि फ़िल्म इंडस्ट्री में होने के बावजूद किस विनम्रता और मिठास के साथ बात करते थे महेन्द्र कपूर. सच कहूँ उस दिन मुझे गायक महेन्द्र कपूर से पिता महेन्द्र कपूर का रूप ज़्यादा सुहाया.बात यहीं ख़त्म नहीं हुई.रोहन का ज़िक्र जिस अंक में हुआ था वह कॉपी महेन्द्र कपूर तक पहुँची...और तत्काल उन्होंने फिर मुझे कॉल किया...थैंक्स डियर तुमने मेरे दिल का वज़न कम कर दिया.
अब कहाँ मिलेगी ऐसी शराफ़तें,मुहब्बते,अख़लाक़ और साफ़दिली.

शानों,उदित नारायणों,सोनू निगमों,अभीजितों सुन रहे हो....