Monday, September 29, 2008

"तन्हाई" - एक नज़्म : फ़ैज़ अहमद "फ़ैज़"

बहुत दिनों पहले फ़ैज़ अहमद "फ़ैज़" की एक नज़्म का अंग्रेज़ी अनुवाद "किस से कहें ?" पर पोस्ट किया था. आज यहाँ पेश है "फ़ैज़" की एक और नज़्म ....... "तन्हाई"

पहले अंग्रेज़ी में अनुवाद, और फिर "तन्हाई" ............. अनुवाद किया है आगा़ शाहिद अली ने. आगा़ शाहिद अली के बारे में संक्षेप में आप उसी पोस्ट पर यहाँ देख सकते हैं


Solitude


Someone, finally, is here ! No, unhappy heart, no one -
just a passerby on his way.

The night has surrendered
to clouds of scattered stars.

The lamps in the halls waver.

Having listened with longing for steps,
the roads too are asleep.

A strange dust has buried every footprint.

Blow out the lamps, break the glasses, erase
all memories of wine. Heart,
bolt forever your sleepless doors,
tell every dream that knocks to go away.

No one, now no one will ever return.



"तन्हाई"





फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार ! नहीं, कोई नहीं
राहरौ होगा, कहीं और चला जायेगा

ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का गु़बार
लड़खडाने लगे ऐवानों में ख्वाबीदा चिराग़
सो गई रास्ता तक - तक के हर इक राहगुज़र
अजनबी ख़ाक ने धुंधला दिए क़दमों के सुराग़
गुल करो शम्मे, बढ़ा दो मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़
अपने बेख्वाब किवाडों को मुक़फ़्फ़ल कर लो

अब यहाँ कोई नहीं, कोई नहीं आएगा


राहरौ = राही
ऐवानों में = महलों में
ख्वाबीदा = सोये हुए
मय-ओ-मीना-ओ-अयाग़ = शराब, प्याला और सुराही
मुक़फ़्फ़ल कर लो = ताले लगा लो

4 comments:

हर्ष प्रसाद said...

मैं भी हूँ उसी 'फैज़' का मारा हुआ. मुबारक हो.

anurag vats said...

फिर कोई आया दिल-ए-ज़ार ! नहीं, कोई नहीं...is nazm se bahut purana rishta hai...achhi yaad dilai...

एस. बी. सिंह said...

एक शेर याद आ गया
कौन आएगा यहाँ , कोई न आया होगा।
घर का दरवाजा हवावों ने हिलाया होगा।

फैज़ साहब की नज़्म क्या क्या याद दिला गई। शुक्रिया

seema gupta said...

ढल चुकी रात, बिखरने लगा तारों का गु़बार
लड़खडाने लगे ऐवानों में ख्वाबीदा चिराग़
" beautiful, emotional"

Regards