Friday, October 17, 2008

संस्कृत का एक सेर

(ना समझे वो अनाड़ी है ...)

आन दो बखत:

काकः कृष्णः पिकः कृष्णः
कः भेद पिककाकयो
वसन्त समये प्राप्ते
काकः काकः पिकः पिकः


रिपीट:

(ना समझे वो अनाड़ी है ...)

9 comments:

शायदा said...

अनाड़ी ही हैं, समझे नहीं।

Dr. Amar Jyoti said...

कहा किसके बारे में है यह तो बताइये।

Vinay said...
This comment has been removed by the author.
Vinay said...

समझ को समझ लो भाई
फिर न समझ तो कैसे
समझ रहे हो तो समझो
न रहे समझ तो कैसे...

मेरी पहेली बुझिये फिर आपको अपना उत्तर मिल जायेगा नहीं मिला तो दक्षिण जाने की ज़रूरत नहीं है।

Udan Tashtari said...

मैं अनाड़ी ...बिल्कुल न समझ पाया..प्रभु, कुछ ज्ञान दो!!!

Arun Sinha said...

अरे अनाड़ी भट्टाचारी भाइयो,

इस संस्कीरत सेर के मानी कुछ यों बैठें करें : के कौआ काला, कोयल भी काली, फेर इन दोनों में के फरक, भाया? अरे फरक तो सीधो यो है के ज़रा मौसम-बहार -- माने बसंत रितू -- आन्ने दे, फेर आपने आप ही दूध को दूध और पानी को पानी हो जाए, कौआ कौआ और कोयल कोयल! आई बात समझ में?

दिनेशराय द्विवेदी said...

शक्ल नहीं, अभिव्यक्ति व्यक्ति की पहचान है।

महेन said...

अरुण मिया न समझाते तो अनाड़ी ही रह जाते।

Satish Saxena said...

बहुत सही लिखा है महाराज !