Wednesday, December 10, 2008

बारिश में करुणानिधान: चीनी कविताओं की श्रृंखला - १

त्रिनेत्र जोशी हिन्दी भाषा और साहित्य को समय-समय पर चीनी समाज-भाषा और साहित्य की दुर्लभ और नायाब झलकियां पिछले कुछ दशकों से दिखलाते आए हैं. चीनी से तमाम गद्य-पद्य रचनाओं का हिन्दी अनुवाद कर चुके जोशी जी ने प्रेमचन्द की 'रंगभूमि' और कृश्न चन्दर की 'एक लड़की हज़ार दीवाने को चीनी भाषा में अनूदित किया है. उन्होंने पत्रिकाओं की सम्पादकी की है, वृत्तचित्र बनाए हैं और चीनी भाषा के अध्ययन-अध्यापन में बहुत समय लगाया है. उनका एक कविता-संकलन आने को है और चीनी भाषा से उनके अनुवादों का एक समग्र वृहद अंक भी.

पिपरिया से वंशी माहेश्वरी के सम्पादन में निकलने वाली महत्वपूर्ण पत्रिका 'तनाव' ने त्रिनेत्र जोशी के कुछ शानदार अनुवाद प्रकाशित किये हैं.

मैं अगले कुछ दिन इन अनुवादों को कबाड़खाने पर लगाता रहूंगा.

आज के लिए प्रस्तुत है सुंग राजवंश काल के श्रेष्ठतम कवि माने जाने वाले कवि सू शि (१०३७-११०१) की कुछ कविताएं.


बारिश में करुणानिधान

रेशम के कीड़े अब हैं तैयार
गेहूं अधपीला
पहाड़ पर मूसलाधार बारिश
किसान जोत नहीं सकते खेत
न औरतें चुनतीं शहतूत
श्वेत वेशभूषा में शान से बैठे हैं सभागार में ऊंचाई पर अमरावतार.
स्वतः स्फूर्त

पूर्वी ढलान पर एक अकेला बूढ़ा
सफ़ेद केश झूलते हवा में
मेरा बेटा प्रसन्न मेरा सुर्ख़ चेहरा देख कर
मुस्कराता हूं मैं यह तो है मदिरा का असर

यों ही

पाले से मेरे केश झूलते हवा में
छोटे से बरामदे में बीमार-सा लेटा बेंत की चारपाई पर
वैद्य ने इस वसन्त बताई है मुखे दिव्य नींद
संभल कर बजाता ताओ भिक्षु पांचवे पहर का गजर.

नववर्ष की पहरेदारी

जल्द ही गुज़र जाएगा साल
सांप की तरह घिसटता बिल की ओर
बस अब उस की आधी ही देह बची रह गई है बाहर
कौन मिटा सकता है इस आखिरी झलक को
और अगर हम बांध भी दें उसकी पूंछ
तो भी कुछ नहीं होगा, नहीं हो पाएंगे सफल.
बच्चे जागे रहने का करते हर उपाय
हंसते खिलखिलाते हैं हम इस रात को आंखों में समेटे
चूज़े नहीं कुकुटाते भोर की बांग
ढोलों को भी करना होगा इस घड़ी का सम्मान
जागते रहें हम दीये का गुल गिरने तक
उठ कर देखता हूं उत्तरी सप्तर्षि मंडल को बुझते हुए
अगला साल शायद आखिरी हो मेरा साल
डरा हूं मैं समय को बरबाद नहीं कर सकता.

इस रात को जियो भरपूर
जवानी को अब भी ख़ूब करता हूं याद!

5 comments:

शिरीष कुमार मौर्य said...

कविताएं बहुत अच्छी !
त्रिनेत्र जी को सलाम !
वे रानीखेत के हैं, सो उनसे एक रिश्ता-सा भी जुड़ता है।

"बाई दि वे" मैं भी पिपरिया का ही "तनाव" हूं अशोक दा !

naveen kumar naithani said...

त्रिनेत्र जी के आनुवाद देखना सुखद रहा. हमे पहल का चीनी साहित्य पर केन्द्रित अन्क बखुबी याद है.त्रिनेत्र जी देह्रादून भी कुच समय रहे-पर्वतवानी साप्ताहिक का सम्पादन करने के लिये.इन कविताओन मे जेन बौद्ध दर्शन की अनुगूज सुनायि परती है.जापानी कोवन शायद इन्ही रास्तो से गुजर कर आया होगा.

naveen kumar naithani said...

त्रिनेत्र जी के आनुवाद देखना सुखद रहा. हमे पहल का चीनी साहित्य पर केन्द्रित अन्क बखुबी याद है.त्रिनेत्र जी देह्रादून भी कुच समय रहे-पर्वतवानी साप्ताहिक का सम्पादन करने के लिये.इन कविताओन मे जेन बौद्ध दर्शन की अनुगूज सुनायि परती है.जापानी कोवन शायद इन्ही रास्तो से गुजर कर आया होगा.

एस. बी. सिंह said...

इस रात को जियो भरपूर

मुनीश ( munish ) said...

thanx. we need to know more about china . itz fast opening up but still full of mystery. when pakistan dies its own death, india and china will come closer indeed!