Wednesday, January 28, 2009

एक अमरीकी करोड़पति का सौ साल पहले लिया गया इन्टरव्यू: अन्तिम हिस्सा

"हम्म्म्म ... आप बड़े मजाकिया आदमी हैं" संशय के साथ अपना सिर हिलाते हुए उसने कहा "मैं क्यों किसी कवि को पसन्द करूं? और किसी कवि को किस बात के लिए पसन्द किया जाना चाहिए?"

"माफ कीजिए" अपने माथे से पसीना पोंछते हुए मैंने कहा "मैं आप से पूछ रहा था कि आप की चैकबुक के अलावा आप की सबसे पसन्दीदा किताब कौन सी है ..."

"वह एक अलग बात है!" उसने सहमत होते हुए कहा "मेरी सबसे पसन्दीदा दो किताबों में एक है बाइबिल और दूसरा मेरा बहीखाता। वे दोनों मेरे दिमाग को बराबर मात्रा में उत्तेजित करती हैं। जैसे ही आप उन्हें अपने हाथ में थामते हैं आपको अहसास होता है कि उनके भीतर एक ऐसी ताकत जो आप को आप की जरूरत का हर सामान उपलब्ध करा सकती है ..."

"ये आदमी मेरी मजाक उड़ा रहा है" मुझे लगा और मैंने सीधे सीधे उसके चेहरे को देखा। नहीं। उसकी बच्चों जैसी आंखों ने मेरे सारे संशय दूर कर दिए। वह अपनी कुर्सी पर बैठा हुआ था अपने खोल में घुसे अखरोट की तरह सिकुड़ा हुआ और यह बात साफ थी कि उसे अपने कहे हर शब्द की सच्चाई पर पूरा यकीन था।

"हां!" अपने नाखूनों की जांच करते हुए उसने बोलना जारी रखा "वे शानदार किताबें हैं! एक फरिश्तों ने लिखी और दूसरी मैंने। आप को मेरी किताब में बहुत कम शब्द मिलेंगे। उसमें संख्याएं ज्यादा है। वह दिखाती है कि अगर आदमी ईमानदारी और मेहनत से काम करता रहे तो वह क्या पा सकता है। सरकार मेरी मौत के बाद मेरी किताब छापे तो वह अच्छा काम होगा। लोग भी तो जानें कि मेरी जैसी जगह पर आने के लिए क्या क्या करना पड़ता है़"

उसने विजेताओं की सी मुद्रा बनाई।

मुझे लगा कि साज्ञाात्कार खत्म करने का समय आ चुका है। हर कोई सिर इस कदर लगातार कुचला जाना बरदाश्त नहीं कर सकता।

"शायद आप विज्ञान के बारे में कुछ कहना चाहेंगे?" मैंने शान्ति से सवाल किया।

"विज्ञान?" उसने अपनी एक उंगली छत की तरफ उठाई। फिर उसने अपनी घड़ी बाहर निकाली समय देखा और उसकी चेन को अपनी उंगली पर लपेटते हुए उसे हवा में उछाल दिया। फिर उसने एक आह भरी और कहना शुरू किया:

"विज्ञान … हां मुझे मालूम है। किताबें। अगर वे अमेरिका के बारे में अच्छी बातें करती हैं तो वे उपयोगी हैं। मेरा विचार ये … कवि लोग जो किताबें विताबें लिखते हैं बहुत कम पैसा बना पााते हैं। ऐसे देश में जहां हर कोई अपने धन्धे में लगा हुआ है किताबें पढ़ने का समय किसी के पास नहीं है …। हां और ये कवि लोग गुस्से में आ जाते हैं कि कोई उनकी किताबें नहीं खरीदता। सरकार ने लेखकों को ठीकठाक पैसा देना चाहिए। बढ़िया खाया पिया आदमी हमेशा खुश और दयालु होता है। अगर अमेरिका के बारे में किताबें वाकई जरूरी हैं तो अच्छे कवियों को किराए पर लगाया जाना चाहिए और अमरीका की जरूरत की किताबें बनाई जानी चाहिए … और क्या।"

"विज्ञान की आपकी परिभाषा बहुत संकीर्ण है।" मैंने विचार करते हुए कहा।

उसने आंखें बन्द कीं और विचारों में खो गया। फिर आंखें खोलकर उसने आत्मविश्वास के साथ बोलना शुरू किया:

"हां हां … अध्यापक और दार्शनिक … वह भी विज्ञान होता है। मैं जानता हूं प्रोफेसर¸ दाइयां¸ दांतों के डाक्टर ये सब। वकील¸ डाक्टर¸ इंजीनियर। ठीक है ठीक है। वो सब जरूरी हैं। अच्छे विज्ञान ने खराब बातें नहीं सिखानी चाहिए। लेकिन मेरी बेटी के अध्यापक ने एक बार मुझे बताया था कि सामाजिक विज्ञान भी कोई चीज है …। ये बात मेरी समझ में नहीं आई …। मेरे ख्याल से ये नुकसानदेह चीजें हैं। एक समाजशास्त्री अच्छे विज्ञान की रचना नहीं कर सकता उनका विज्ञान से कुछ लेना देना नहीं होता। एडीसन बना रहा है ऐसा विज्ञान जो उपयोगी है। फोनोगाफ और सिनेमा – वह उपयोगी हे। लेकिन विज्ञान की इतनी सारी किताबें। ये तो हद है। लोगों ने उन किताबों को नहीं पढ़ना चाहिए जिनसे उन के दिमागों में संदेह पैदा होने लगें। इस धरती पर सब कुछ वैसा ही है जैसा होना चाहिए और उस सब को किताबों के साथ नहीं गड़बड़ाया जाना चाहिए।"

मैं खड़ा हो गया।

"अच्छा तो आप जा रहे हैं?"

"हां" मैंने कहा "लेकिन शायद चूंकि अब मैं जा रहा हूं क्या आप मुझे बता सकते हैं करोड़पति होने का मतलब क्या है?"

उसे हिचकियां आने लगीं और वह अपने पैर पटकने लगा। शाायद यह उसके हंसने का तरीका था?

"यह एक आदत होती है" जब उसकी सांस आई वह जोर से बोला।

"आदत क्या होती है?" मैंने सवाल किया।

"करोड़पति होना ॰॰॰ एक आदत होती है भाई!"

कुछ देर सोचने के बाद मैंने अपना आखिरी सवाल पूछा:

"तो आप समझते हैं कि सारे आवारा नशेड़ी और करोड़पति एक ही तरह के लोग होते हैं?"

इस बात से उसे चोट पहुंची होगी। उसकी आंखें बड़ी हुईं और गुस्से ने उन्हें हरा बना दिया।

"मेरे ख्याल से तुम्हारी परवरिश ठीकठाक नहीं हुई है।" उसने गुस्से में कहा।

"अलविदा" मैंने कहा।

वह विनम्रता के साथ मुझे पोर्च तक छोड़ने आया और सीढ़ियों के ऊपर अपने जूतों को देखता खड़ा रहा। उसके घर के आगे एक लान था जिस पर बढ़िया छंटी हुई घनी घास थी। मैं यह विचार करता हुआ लान पर चल रहा था कि मुझे इस आदमी से शुक्र है कभी नहीं मिलना पड़ेगा। तभी मुझे पीछे से आवाज सुनाई दी:

"सुनिए"

मैं पलटा। वह वहीं खड़ा था और मुझे देख रहा था।

"क्या यूरोप में आपके पास जरूरत से ज्यादा राजा हैं?" उसने धीरे धीरे पूछा।

"अगर आप मेरी राय जानना चाहते हैं तो हमें उनमें से एक की भी जरूरत नहीं है।" मैंने जवाब दिया।

वह एक तरफ को गया और उसने वहीं थूक दिया।

"मैं सोच रहा कि अपने दिए दोएक राजाओं को किराए पर रखने की।" वह बोला। "आप क्या सोचते हैं?"
"लेकिन किस लिए?"

"बड़ा मजेदार रहेगा। मैं उन्हें आदेश दूंगा कि वे यहां पर मुक्केबाजी कर के दिखाएं …"

उसने लान की तरफ इशारा किया और पूछताछ के लहजे में बोला:

"हर रोज एक से डेढ़ बजे तक। कैसा? दोपहर के खाने के बाद कुछ देर कला के साथ रहना अच्छा रहेगा … बहुत ही बढ़िया।"

वह ईमानदारी से बोल रहा था और मुझे लगा कि अपनी इच्छा पूरी करने के लिए वह कुछ भी कर सकता है।

"लेकिन इस काम के लिए राजा ही क्यों?"

"क्योंकि आज तक किसी ने इस बारे में नहीं सोचा" उसने समझाया।

"लेकिन राजाओं को तो खुद दूसरों को आदेश देने की आदत पड़ी होती है" इतना कह कर मैं चल दिया।

"सुनिए तो" उसने मुझे फिर से पुकारा।

मैं फिर से ठहरा। अपनी जेबों में हाथ डाले वह अब भी वहीं खड़ा था। उसके चेहरे पर किसी स्वप्न का भाव था।

उसने अपने होंठों को हिलाया जैसे कुछ चबा रहा हो और धीमे से बोला:

"तीन महीने के लिए दो राजाओं को एक से डेढ़ बजे तक मुक्केबाजी करवाने में कितना खर्च आएगा आपके विचार से?"

1 comment:

स्वप्नदर्शी said...

Very good. When I started to read this, I thought it may be a real interview. But slowly I got the undertone and purpose.

Very interesting indeed. Thanks