Sunday, February 22, 2009

घर में अकेली औरत के लिए - चंद्रकांत देवताले

तुम्हें भूल जाना होगा समुद्र की मित्रता और जाड़े के दिनों को
जिन्हें छल्ले की तरह अँगुली में पहनकर
तुमने हवा और आकाश में उछाला था
पंखों में बसन्त को बाँधकर
उड़ने वाली चिड़िया को पहचानने से
मुकर जाना ही अच्छा होगा...
तुम्हारा पति अभी बाहर है तुम नहाओ जी भर कर
आइने के सामने कपड़े उतारो
आइने के सामने पहनो
फिर आइने को देखो इतना कि वह तड़कने को हो जाए
पर तड़कने के पहले अपनी परछाई हटा लो
घर की शान्ति के लिए यह ज़रूरी है
क्योंकि वह हमेशा के लिए नहीं
सिर्फ़ शाम तक के लिए बाहर है
फिर याद करते हुए सो जाओ या चाहो तो अपनी पेटी को
उलट दो बीचोंबीच फ़र्श पर
फिर एक-एक चीज़ को देखते हुए सोचो
और उन्हें जमाओ अपनी-अपनी जगह पर
अब वह आएगा
तुम्हें कुछ बना लेना चाहिए
खाने के लिए और ठीक से
हो जाना होगा...सुथरे घर की तरह
तुम्हारा पति
एक पालतू आदमी है या नहीं
यह बात बेमानी है
पर वह शक्की हो सकता है
इसलिए उसकी प्रतीक्षा करो
पर छज्जे पर खड़े होकर नहीं
कमरे के भीतर वक़्त का ठीक हिसाब रखते हुए
उसके आने के पहले
प्याज मत काटो
प्याज काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है
बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो
जिन्हें पढ़ना कतई आवश्यक नहीं होगा
पर यह विचार पैदा करना अच्छा है
कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो ...

6 comments:

Arvind Mishra said...

मगर जो ये सिफारिशे हैं उनसे तो शक न होना हो तो भी हो जाना पक्का है ! काहें बंटाधार कर रहे हैं एक प्रोषित पतिका का !
अब यह मत कहियेगा कि मुझे कविता की समझ नही है !

शोभा said...

प्याज मत काटो
प्याज काटने से शक की सुरसुराहट हो सकती है
बिस्तर पर अच्छी किताबें पटक दो
जिन्हें पढ़ना कतई आवश्यक नहीं होगा

पर यह विचार पैदा करना अच्छा है
कि अकेले में तुम इन्हें पढ़ती हो ...
बहुत खूब लिखा है।

सुजाता said...

बहुत खूब !

रागिनी said...

अच्छी कविता! जिन दस ब्लाग्स पर लगातर जाती हूं उसमें आप भी हैं। यहां ऐसी ही स्तरीय सामग्री पढ़ने को मिलती हैं।

trinetra said...

adbhut rachnayen kar rahe hain Devtale ji. Yah unki ek aur nayaab rachna hai Ekant ko padadne aur use itni sahaj bhasha mein itni kavyatmak vilakshanta ke saath sampreshit karne ki mahiri unke wahan sattar ke dashak se hee nirbadh chalee aa rahi hai. Yahan use ek naya aayam aur samkaaleenta ke saath pesh kar Devtale jee ney
ek sanrachnatmak spectrum khol diya hai. Eisa wahee kar sakte hain.

अजेय said...

देवताले जी की यह कविता पहली बार पढ़ी है, बहुत सुन्दर!