Saturday, June 20, 2009

प्राग, गोलेम का मिथक और कुछ तस्वीरें

बाइबिल के मुताबिक 'गोलेम' शब्द का अर्थ हुआ एक अधूरा जैवपिण्ड. शुरुआत से ही गोलेम शब्द का जुड़ाव चमत्कार और जादू वगैरह के साथ रहा.

फ़िलहाल प्राग के यहूदी कब्रिस्तान में दफ़नाए गए रब्बी लोव और गोलेम का ज़िक्र अपरिहार्य रूप से साथ साथ किया जाता है. रब्बी लोव सोलहवीं शताब्दी में प्राग के यहूदियों के सबसे बड़े धर्मगुरु थे. वे यहूदी धर्म के सबसे बड़े अध्येताओं में भी गिने जाते हैं.

एक किंवदन्ती के अनुसार यह भविष्यवाणी की गई थी कि प्राग के सारे यहूदियों को कत्ल-ए-आम का सामना करना पड़ सकता था. उन दिनों सेमाइट विरोधियों ने यहूदियों पर हमला बोला हुआ था. उक्त भविष्यवाणी के मद्देनज़र रब्बी लोव ने प्राग में बहने वाली व्रत्लावा नदी के किनारे की मिट्टी से गोलेम नामक एक महाकाय का सृजन किया. मिट्टी के इस विशाल पुतले के भीतर मन्त्रोच्चारण कर प्राण फ़ूंके गए. गोलेम को बनाने का मकसद था प्राग नगर की सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु एक पहरेदार तैयार करना.



बड़ा होने के साथ साथ गोलेम हिंसक होता चला गया. उसने भोले भाले लोगों का कत्ल करना शुरू कर दिया. एक अन्य कथा के मुताबिक प्रेम में पड़ गए गोलेम को उसकी प्रेमिका द्वारा अस्वीकार कर दिया गया था जिसके कारण वह एक हिंसक दैत्य में तब्दील हो गया.

बादशाह ने रब्बी लोव से गोलेम को नष्ट करने का अनुरोध किया. गोलेम को निष्क्रिय करने हेतु रब्बी ने उसके माथे पर लिखे हिब्रू शब्द EMET (अर्थात सत्य या वास्तविकता) का पहला अक्षर मिटा दिया. बचे हुए शब्द MET का अर्थ होता है मृत्यु. इस प्रकार गोलेम का नाश हुआ. बादशाह को यह बताया गया था कि ज़रूरत पड़ने पर गोलेम को वापस ज़िन्दा किया जा सकता है. इस कथा के मुताबिक गोलेम को पुराने सिनागॉग के तहखाने में दफ़ना दिया गया. कोई कहता है गोलेम का शव अब भी वहीं है, कोई कहता है उसे चुरा कर कहीं और दफ़ना दिया गया. कहा तो यह भी जाता है कि दूसरे विश्वयुद्ध में कुछ नाज़ी सैनिकों ने गोलेम को शव को चुराने का प्रयास किया पर वे सारे मारे गए. सच जो भी हो सिनागॉग का तहखाने आम जनता के लिए कभी नहीं खोला जाता.



गोलेम का मिथक समूचे चेक गणराज्य में बेहद लोकप्रिय है. तमाम रेस्त्रां और कम्पनियां इस नाम को अपना चुके हैं. गोलेम के भीतर अतिमानवीय और परामानवीय शक्तियां हुआ करती थीं - वह स्पर्श मात्र से अन्धों को रोशनी दे सकता था, बीमारियां दूर कर सकता था और यहां तक कि मृत लोगों को जीवित भी कर सकता था.

गोलेम की कथा १८४७ में प्राग से छपे एक ग्रन्थ में सामने आई. बाद में १९११ में कथित रूप से खोजी गई रब्बी लोव की डायरियों में गोलेम के सृजन और नाश का वर्णन था.

गोलेम का मिथक यूरोप के अन्य देशों जैसे इंग्लैण्ड, फ़्रांस, जर्मनी और नीदरलैण्ड में भी प्रचलित है.

कल जिस यहूदी कब्रिस्तान की तस्वीरें मैंने लगाई थीं उसी के निकट अवस्थित एक संग्रहालय में गोलेम से सम्बन्धित ढेरों चीज़ें प्रदर्शित की गई हैं. म्यूज़ियम शॉप में आप अपनी पसन्द का गोलेम खरिद सकते हैं.

प्राग के भीतर अजीब-ओ-गरीब कहानियों की खानें है.

किसी ज़माने में यहां कीमियागर भी बसा करते थे. उन को लेकर ढेरों ढेर कहानियां हैं.

भूतों को लेकर एक से एक शानदार किस्से हैं. सबसे ज़्यादा मशहूर तो एक संगीतकार भूत का है जो पुराने किले के आसपास किसी किसी को रोता हुआ वायोलिन बजाता नज़र आ सकता है.

प्राग की यादों ने तो अब उमड़ना शुरू किया है. सो एकाध पोस्ट्स और आनी चाहिए शायद.

(ऊपर: मिकोलस आलेस का लिथोग्राफ़: रब्बी लोव और गोलेम और रब्बी लोव की कब्र)

प्राग की चन्द और तस्वीरें देखिए फ़िलहाल.





8 comments:

Rangnath Singh said...

प्राग के बारे में अधिक से अधिक पोस्ट करें !!
हमारे पैर जहाँ न पहुँच पाए वहाँ कम से कम
नजर तो पहुँचे !!

शरद कोकास said...

एक विचारशील व्यक्ति और पर्यटक की निगाह से देखे जाने वाले इतिहास मे फर्क तो होता है

काशिफ़ आरिफ़/Kashif Arif said...

बहुत अच्छी जानकारी उपलब्ध कराई आपने..... इस विषय पर और भी जानना चाहुंगा

hello said...

गोलम .... मैंने पहले ये नाम लोर्ड ऑफ़ थे रिंग्स फिल्म में सुना था....

चलो जो भी है , अगर इस जैसा जीव सच में था तो इसकी तुलना हम उन दैत्यों से कर सकते है जिन्हें इतिहास में ऋषि अपनी रक्षा के लिए बनाते थे.......हिन्मे असीम शक्ति होती थी...

Ek ziddi dhun said...

jaduii tasveeren ban rahee hain padhkar man mein. aglee posts ke liye utsukta badh rahee hai.

मुनीश ( munish ) said...

waiting for more....

ravindra vyas said...

मुनीशजी के सुर में सुर मिलाते हुए...कि जारी रखें...और जल्द ही...

Unknown said...

अच्छी पोस्ट है, कबाड़ खाने में इस तरह की बेशकीमती जानकारिया मिलना एक सुखद संयोग जेसा है. वेस्ट मेनेजमेंट का इससे अच्चा तरीका ओउर क्या हो सकता है?