Saturday, July 25, 2009

गरजत घन दमकत दामिनी


पंडित गोकुलोत्सव महाराज के स्वर में राग मेघ की यह प्रस्तुति पिछले साल ११ जून को कबाड़ख़ाने में लगाई गई थी. शिकायत आई थी कि अब वह प्लेयर काम नहीं कर रहा. मौसम भी है और दस्तूर भी. इसलिए दुबारा सुनवा रहा हूं.

इस पोस्ट पर भाई संजय पटेल ने यह टिप्पणी कर हमारा ज्ञानवर्धन किया था:

"पूज्यपाद गोस्वामी गोकुलोत्सवजी महाराज जनवरी में पद्मश्री से नवाज़े गए हैं और विक्रम विश्व-विद्यालय ने उन्हें मानद डॉक्टरेट भी दी है. वे अमीरख़ानी गायकी के सबसे सिध्दहस्त और निकटतम गायकी के गुण-गायक हैं.वे पुष्टीमार्गीय वैष्णव परम्परा मे वरिष्ठ आचार्य हैं.ज़्योतिष, यूनानी,आर्युर्वेदिक चिकित्सा पद्धति और अरबी, फ़ारसी के गूढ़ जानकार हैं. चूँकि पुष्टीमार्ग (श्रीनाथद्वारा परम्परा जहाँ से उपजा है हवेली संगीत) के परम आचार्य हैं अत: बहुत मर्यादित रूप से गायक के रूप में सार्वजनिक कार्यक्रमों में शिरक़त करते हैं. वे मूलत: पखावज वादक रहे हैं और आकाशवाणी के सुनहरे समय में आकाशवाणी संगीत प्रतियोगिता का स्वर्ण-पदक पा चुके हैं.

उस्ताद अमीर ख़ा साहब उसी मंदिर बतौर सारंगी वादक मुलाज़िम थे जहाँ गोकुलोत्सवजी आज आचार्य के रूप में प्रतिष्ठित हैं उन्होने कभी भी ख़ाँ साहब को प्रत्यक्ष नहीं सुना न दीदार किये. बस युवावस्था में पख़ावज और ध्रुपद गायकी से जुड़ने के बाद अनायास उन्हें मंदिर परिसर में चूड़ीवाले बाजे पर अमीर ख़ाँ साहब मरहूम की ध्वनि-मुद्रिकाएँ को सुनने को मिलीं. बस वे कुछ ऐसे मुत्तासिर हुए इस करिश्माई गायकी को अपनी खरजपूर्ण आवाज़ में अभिव्यक्त करना शुरू दिया . मधुरपिया तख़ल्लुस से वे हज़ार से ज़्याद बंदिशे रच चुके हैं . ये जो रचना आपने सुनवाई है वह भी महाराजश्री की रची हुई है (ध्यान से सुनियेगा आख़िर में उपनाम मधुरपिया आया है) और तराना ख़ुद अमीर साह्ब की बहुचर्चित बंदिश का हिस्स है. ख़ाँ साहब मरहूम ने तराने में कई फ़ारसी रचनाओं का शुमार किया था जिसका रंग आपके द्वारा रचना में है.

ज़िन्दगी अब इन महान साधकों से ही तसल्ली पाती है अशोक भाई. ये बात अलग है अमीर ख़ाँ साहब की तरह हम इन्दौर वाले गोस्वामी गोकुलोत्सवजी का क़द भी पहचान नहीं पाए हैं. न जाने क्या तासीर है इस शहर की कि इन्दौर से बाहर जाने के बाद ही अपने हीरों की चमक का अहसास करता है (अमीर ख़ाँ साहब भी इन्दौर छोड़कर कोलकाता चले गये थे.) अल्लाताला जो करते हैं ठीक ही करते हैं."

यह इत्तेफ़ाक है कि कल ही इन्दौर ही में रहने वाले सुशोभित सक्तावत ने उस्ताद अमीर ख़ान साहेब पर एक अविस्मरणीय आलेख लिखा था. इस पोस्ट में कलकत्ता से प्रियंकर पालीवाल जी ने अपने कमेन्ट में यूट्यूब पर उस्ताद अमीर ख़ां साहेब की जीवनी पर आधारित फ़िल्म्स डिवीज़न की बनाई एक डॉक्यूमेन्ट्री का लिंक दिया था. बेहतरीन फ़िल्म बनी है - अविस्मरणीय! इस डॉक्यूमेन्ट्री की शुरुआत में उस्ताद अमीर ख़ान ख़ां भी इसी राग मेघ की ठीक वही कम्पोज़ीशन गा रहे हैं.

एक दूसरा सुखद इत्तेफ़ाक यह भी माना जाना चाहिये कि कुछ ही दिन पहले भाई संजय पटेल ही ने एक पोस्ट सुरपेटी पर लगाई थी जिसका शीर्षक था: 'यह उस्ताद अमीर ख़ां नहीं गोस्वामी गोकुलोत्सव जी हैं'. इस पोस्ट पर भी ज़रूर जाएं.

फ़िलहाल पंडितजी के स्वर में मेघ सुनिये:



और अमीर ख़ां साहब पर बनी डॉक्यूमेन्ट्री का पहला भाग देखिये:

6 comments:

सौरभ के.स्वतंत्र said...

एकदम कबाड़...काबिले तारीफ. पर विडम्बना यह है कि इस बार मैंने न मेघ देखें और न हीं बारिस..

अफ़लातून said...

बहुत ही खूबसूरत प्रस्तुति आपको , संजय पटेल और प्रियंकर को हार्दिक बधाई ।
अमीर ख़ान साहब के स्वर में एक बन्दिश हाल ही में यहाँ लगाई है । बहुत अच्छी डॉक्युमेन्टरी है । शेष भाग भी बिना यू ट्यूब पर गये यहीं देखे जा सकते हैं !
अफ़लातून

Ashok Kumar pandey said...

वाह्…
अबकि ग्वालियर मे मेघ तो नहीं बरसे पर आपने यह सुनवाकर कुछ तो गीला कर ही दिया मन।

पारुल "पुखराज" said...

जी भर सुना !आभार

मुनीश ( munish ) said...

I have neither the patience nor perhaps the education to appreciate classical music ,but im more than happy to be in company of u elites' ! This is a heady feel of being on a high, i love India !

Nanak said...

अमीर खां साब की फनकारी के बारे में तारीफ़ के कुछ शब्द कहना ही हिमाकत लगती है। लेकिन आज हिन्दुस्तानी संगीत को उनकी तर्ज़ पर आगे बढ़ाने वाले कहाँ बचे हैं ? प्रसिद्धि की ललक और अधपकी साधना ने संगीत को दूर की कोढ़ी बना दिया है। गायक या वादक एडेड उपकरणों, अदाकारी और डिजाइनर पोशाक की बैशाखी के बिना पंगु हैं। आगे-आगे शास्त्रीय संगीत को असंभव और दुष्प्राप्य कला माना जाएगा और ऐसे में अमीर खां जैसे महान गायकों को देवता।