Saturday, September 19, 2009

सालोमान वेस्ट की कहानी


कल आपने फ़र्नान्दो पेसोआ द्वारा अलैक्ज़ैंडर सर्च के नाम से लिखी गई कविता 'स्मृतिलेख' के कुछ हिस्से पढ़े थे. आज पढ़िये इसी कवि की मशहूर रचना 'सालोमन वेस्ट की कहानी'

बस इतनी ही है सालोमन वेस्ट की कहानी
दिखता था हमेशा हड़बड़ी में पर जल्दी कभी न थी उसे
वह झींकता, मशक्कत करता जानवरों की तरह
लेकिन अन्त में किया कुछ नहीं उसने
बस इतनी ही है सालोमन वेस्ट की कहानी

उसने इच्छा करने और उन्हें पाने की मेहनत में जीवन बिताया
और कुछ बना ही नहीं उसके जीवन का
दर्द और पसीने के बावजूद वह किया करता था मशक्कत
लेकिन किसी काम नहीं आया वह सारा
बस इतनी ही है सालोमन वेस्ट की कहानी

बाक़ी की चीज़ें शुरू होती थीं ख़त्म नहीं
और बहुत सारा जो किया जाना था नहीं किया गया
तमाम ग़लत चीज़ों को सुधारा नहीं गया
बस इतनी ही है सालोमन वेस्ट की कहानी

हर दिन की नई योजनाओं से मिलता था धोखा
तो भी हर दिन था बाक़ी दिनों सा
इन्हीं के बीच वह जिया और मरा
वह ख़ुद को चिढ़ाता ख़ुद ही चिन्ता करता था
वह भागा, फ़िक्रमन्द रहा और रोया
लेकिन कुछ और नहीं कहा जा सकता उसके जीवन को लेकर
सिवाय इन दो साफ़ तथ्यों के -
वह जिया और मरा.
बस इतनी ही है सालोमन वेस्ट की कहानी

8 comments:

कामता प्रसाद said...

अशोक जी, साफ-साफ बातें कहने वाली कविताओं को पढ़वाने के लिए शुक्रिया।
तस्‍वीर क्‍या कुछ बता रही है समझ नहीं आया।

मुनीश ( munish ) said...

......Because Solomon West never cared to read any of Dale Carnegie's books ,like 'How to win friends and influence people'. He never read even ' How to stop worrying and start living'.Had he been alive i would have gifted him some Shiv Khera or Deepak Chopra bestseller which have been lying in my shelf waiting to feed white ants.

सिद्धार्थ शंकर त्रिपाठी said...

जिन्दगी में शौक क्या कारे नुमाया कर गये।
बी.ए.किया,नौकर हुए,पेन्शन मिली और मर गये॥

अच्छी प्रस्तुति का आभार।

प्रीतीश बारहठ said...

कविता और मुनीश जी की टिप्पणी दोनों मिलकर एक एक समझने लायक बात कहती हैं।
मुनीश जी,
आप ये किताबें इस कविता के साथ शिव खेड़ा और दीपक चौपड़ा को ही भेंट करदें, यदि वे कुछ ऐसा कर सकें जो सोलोमन नहीं कर सका।

Bhupen said...

अद्भुत. ये तो मुझ जैसे कई लोगों की कहानी है जो कविता की शक्ल में सामने आई है.

शरद कोकास said...

सिवाय इन दो साफ़ तथ्यों के -
वह जिया और मरा.
इस कविता मे इन दो प्रकट तथ्यो के अलावा वे तमाम अप्रकट तथ्य है जो सालोमन की बस इतनी सी कहानी को जन्म देते है गहरे अर्थ लिये इस कविता की प्रस्तुति के लिये आपको धन्यवाद

शरद कोकास said...

"फ़र्नान्दो पेसोआ द्वारा अलैक्ज़ैंडर सर्च के नाम से लिखी गई कविता " अशोक भाई इस पर भी कुछ प्रकाश डालिये ।

Ashok Pande said...

भाई शरद कोकास जी

पेसोआ द्वारा 'रचे' गए कुल कवियों की संख्या अस्सी से ज़्यादा थी. अलैक्ज़ैन्डर सर्च नाम के कवि की रचना पेसोआ ने सबसे पहले की थी यानी जब वह कुल उन्नीस साल का था. पेसोआ के बारे में इस तथ्य का मैंने एकाधिक बार ज़िक्र किया है. एक लिंक यह रहा:

http://kabaadkhaana.blogspot.com/2009/03/blog-post_20.html