Tuesday, December 8, 2009

एक सूटकेस में भरे प्रेम के सारे विशेषण

निज़ार क़ब्बानी की कुछ कवितायें आप पहले भी पढ़ चुके हैं। प्रेम और ऐंद्रिकता को उदात्त धरातल पर स्थापित कर उसे इसी दुनिया के मनुष्यों के बीच देखने , दिखाने और नए नजरिए से देखे जाने की राह का अन्वेषी यह कवि बार - बार अपनी ओर खींचता है तथा देश , दुनिया व दुनियादारी के पचड़ों से उपजी शुष्कता को कविता के मीठे जल से सींचता है। आइए, आज उनकी इस छोटी - सी इस कविता के बहाने अपने भीतर तनिक आर्द्रता को महसूस करें।


भाषा

प्रेम में डूबा हुआ आदमी
कैसे इस्तेमाल कर सकता है पुराने शब्द ?
कैसे बर्दाश्त कर सकती है कोई स्त्री
कि उसका प्रियतम
शयन करे
व्याकरणाचार्यों और भाषा वैज्ञानिकों के साथ।

कुछ नहीं कहा मैंने उस स्त्री से
जिससे करता हूँ प्रेम
बस इतना भर किया -
एक सूटकेस में भरे
प्रेम के सारे विशेषण
और उड़ चला सारी भाषाओं के पार।

8 comments:

Ashok Kumar pandey said...

वाह क्या अद्भुत उडान है…

डॉ .अनुराग said...

vakai .....

मनोज कुमार said...

असाधारण शक्ति का पद्य एक जिज्ञासा जगाती है।

Chandan Kumar Jha said...

विलक्षण !!!!!

Ambarish said...

hmmm.. interesting...

लोकेन्द्र बनकोटी said...

Adbhut!

Priyankar said...

adbhut !

Priyankar said...

adbhut !