Thursday, January 28, 2010

दिल देखते ही हो गया शैदा बसन्त का - नज़ीर अकबराबादी

नज़ीर अकबराबादी साहेब की बसन्त सीरीज़ जारी



जोशे निशात ओ ऐश है हर जा बसन्त का
हर तरफ़ा रोज़गारे तरब जा बसन्त का
बाग़ों में लुत्फ़ नश्वोनुमा की हैं कसरतें
बज़्मों में नग़्मा ख़ुशदिली अफ़्जा बसन्त का
फिरते हैं कर लिबास बसन्ती वो दिलबरां
है जिनसे ज़ेर निगार सरापा बसन्त का
जा दर पे यार के ये कहा हमने सुबह दम
ऐ जान है अब तो कहीं चर्चा बसन्त का
तशरीफ़ तुम न लाए जो करके बसन्ती पोश
कहिये गुनाह हमने क्या किया बसन्त का
सुनते ही इस बहार से निकला कि जिसके तईं
दिल देखते ही हो गया शैदा बसन्त का

अपना वो ख़ुश लिबास बसन्ती दिखा ’नज़ीर’
चमकाया हुस्ने यार ने क्या-क्या बसन्त का

3 comments:

दिनेशराय द्विवेदी said...

हम तो नजीर की नजर पे बहुत पहले से फिदा हैं।

Udan Tashtari said...

नज़ीर अकबराबादी की रचना पढ़वाने का आभार!

समयचक्र said...

रचना पढ़वाने का आभार...