Saturday, June 19, 2010

जब पेले का खेल देखने को युद्धविराम घोषित हुआ था



फ़ुटबॉल के इतिहास के महानतम खिलाड़ी माने जाने वाले पेले की तारीफ़ करते हुए हॉलैण्ड के पूर्व खिलाड़ी और कोच योहान क्रायफ़ ने एक बार कहा था: "पेले दुनिया के इकलौते फ़ुटबॉलर थे जिनका खेल किसी भी नियम-कानून और तर्क से परे निकल जाता था. वे खेलते नहीं थे, जादू किया करते थे." यहां यह बताना उचित लगता है कि तीन बार 'यूरोपियन प्लेयर ऑफ़ द ईयर' का सम्मान पा चुके खुद योहान क्रायफ़ 'टोटल फ़ुटबॉल' के सबसे अच्छे खिलाड़ी माने जाते थे.

पेले कुल सत्रह साल के थे जब उन्होंने १९५८ के फ़ुटबॉल विश्व कप का फ़ाइनल खेला था. स्वीडन में हुए इस विश्वकप फ़ाइनल में ब्राज़ील ने स्वीडन पर पांच-दो से जीत हासिल की थी. पेले तब तक अपने करिश्माई खेल से अंतर्राष्ट्रीय फ़ुटबॉल जगत के नवीनतम सितारे बन चुके थे. इस फ़ाइनल में पेले ने दो शानदार गोल किये थे. जबकि पूरे टूर्नामेन्ट में उनके द्वारा किये गए तेरह गोलों का रिकॉर्ड करीब पचास सालों तक कायम रहा. पेले को मार्क कर रहे स्वीड सुरक्षापंक्ति के एक खिलाड़ी का कहना था: "पांच गोल खा चुकने के बाद किसी तरह की वापसी का विचार करना मूर्खता होती. और जो खेल पेले दिखा रहे थे, उसे न देखना और आश्चर्यमिश्रित प्रसन्नता का अनुभव न करना पाप होता."

इस दर्ज़े के खिलाड़ी की आज के तथाकथित 'पेशेवर' खेलजगत में कल्पना तक नहीं की जा सकती. फ़ुटबॉल के खेल में अपने पूरे कैरियर के दौरान पांच सौ गोल कर पाना किसी भी बड़े खिलाड़ी का सपना होता है. पेले यह उपलब्धि फ़कत बाईस साल की आयु में पा चुके थे. करीब तेरह सौ गोल कर चुके पेले की लोकप्रियता का आलम यह था कि एक बार १९७० में जब वे मैक्सिको सिटी में एक मैच खेलने पहुंचे तो छुट्टी का दिन न होने के कारण समूची मैक्सिको सिटी का सारा काम काज ठप्प पड़ गया था. तमाम दफ़्तरों और दुकानों के बाहर बड़े बड़े बोर्ड लगे हुए थे: "आज बन्द है. हम सब शहंशाह का खेल देखने गये हुए हैं"

ब्राज़ील के एक निर्धन घर में जन्मे पेले का असली नाम एडसन अरान्तेस दो नासीमेन्तो था. घरवाले प्यार से उन्हें डीको कहते थे. लड़कपन के दिनों में वे अपने मुहल्ले में फ़ुटबॉल खेल रहे थे. जाहिर है बाकी के लड़के उनसे कहीं बदतर खेल रहे होंगे. खेल खेल में किसी ने उन्हें पेले कहना शुरू किया. इस बात पर पेले ने आपत्ति की लेकिन जैसे-तैसे वह नाम उनके साथ चिपक ही गया. पेले धीरे धीरे सारे संसार में एक ब्रान्ड बन गया और एक सर्वे के मुताबिक य़ूरोप में 'कोका कोला' के बाद सबसे ज़्यादा बिकने वाला ब्राण्ड पेले था. पेले के प्रशंसकों में कई देशों के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और सेनाध्यक्ष वगैरह भी थे. एक बार ईरान के तत्कालीन शाह ने अपना कार्यक्रम तीन घंटे आगे खिसका दिया और हवाई अड्डे पर रुक कर पेले की फ़्लाइट का इन्तज़ार किया सिर्फ़ इसलिए कि वे एक बार पेले से मिलना भर चाहते थे.

नाइजीरिया में बायाफ़्रा के साथ चल रहे युद्ध के दौरान दो दिनों का युद्धविराम सिर्फ़ इसलियेये घोषित किया गया कि दोनों पक्षों के लोग पेले को खेलता हुआ देख सकें. १९६९ में कॉंगो के किन्शाशा और ब्राज़ाविल के बीच भीषण युद्ध छिड़ा हुआ था. पेले के क्लब सान्तोस ने युद्ध से कुछ माह पहले ब्राज़ाविल में एक मैच खेलने की स्वीकृति दी थी. ब्राज़ाविल पहुंचने से पहले किन्शाशा की फ़ौजों ने अपनी सुरक्षा में टीम को कॉंगो नदी तक पहुंचाया. कॉंगो के उस तरफ़ ब्राज़ाविल के सिपाहियों ने टीम को सुरक्षा प्रदान की.

मैच खेल चुकने के बाद यही क्रम दुहराया गया. ब्राज़ाविल के सैनिकों ने टीम को किन्शाशा की फ़ौज को सौंप दिया. लेकिन किन्शाशा में सान्तोस के मैनेजर से कहा गया कि आप तभी वापस जा सकते हैं जब एक मैच किन्शाशा में भी खेलें. मैच हुआ और पेले के खेल को देखने ऐतिहासिक भीड़ जुटी.

तीन दिनों के अघोषित युद्धविराम के बाद पेले के टीम वापस लौट गई. उस के जाने के साथ ही युद्ध पूरी भीषणता के साथ दुबारा शुरू जो गया.

(पेले के खेल की झलक - यूट्यूब से साभार)

4 comments:

प्रवीण पाण्डेय said...

गज़ब का खेल था । मूव्ज़ देख कर दंग रह जाते हैं ।

मुनीश ( munish ) said...

Kamaal !Black Pearl da javab nahin!

Vivek Jain said...

pele was relay great..
vivj2000.blogspot.com

अमिताभ मीत said...

Amazing !! Is a gross understatement. This man was absurd !!