Tuesday, October 12, 2010

तुम एक गोरखधन्धा हो


नुसरत फ़तेह अली ख़ान साहेब की एक अजबग़ज़ब रचना

6 comments:

परमेन्द्र सिंह said...

अद्भुत ! बार-बार सुनना होगा !

abcd said...

अद्भुत/
वाकई कई बार सुनना पडेगा..
क्योन्की इन सवालो के जवाब क्या ही मिलेन्गे कभी...
और जिस्को मिलेन्गे वो क्या ही मिलेगा कभी..
और वो जो मिला भी कभी तो क्या ही अप्ने को सारे जवाब दे देगा वो !??
और दे भी दिये तो क्या ही समझ आयेन्गे वो ?!

इस्लिये आओ झुमे और नाचे कि....

तुम एक गोरखधन्धा हो...

डॉ .अनुराग said...

wow........

मृत्युंजय said...

अरे सर जी,
फोटू कैसी तो लगाई है.
नुसरत का मुंह बिगड़ गया!

बाबुषा said...

नाज़ खयालवी की ये कृति नुसरत बब्बा की आवाज़ में मुझे कहाँ ले जा फेंकती है....इसे बयाँ नहीं किया जा सकता !
पचास बार ..सौ बार ...हज़ार बार ..बार बार ...!
वहीं..!

बाबुषा said...

हैरां हूँ मेरे दिल में समाए हो किस तरह , हालांकि दो जहाँ में समते नहीं तो तुम !



आंसू ....आंसू !!!!!