Monday, January 17, 2011

एक चीनी लोककथा - २


जो भी हो वाई था तो मूर्ख ही. अगर वह झांग हाओगु की परीक्षा लेना ही चाहता था तो उसने उसे इम्तहान में बैठने की अनुमति दे देनी थी. उसे अपना व्यक्तिगत कार्ड देने की क्या ज़रूरत थी? कार्ड हाथ में थामे झांग हाओगु जब परीक्षास्थल पहुंचा तो एक अधिकारी उसे बाकायदा अपने साथ भीतर तक ले गया.

भीतर पहुँचने के बाद उसने कार्ड दिखाया. वाई का कार्ड देखते ही दोनों मुख्य परीक्षक अपनी जगह से उछल पड़े. एक बोला: "यह आदमी राजकुमार वाई का भेजा हुआ है. ज़रूर उसका नज़दीकी रिश्तेदार होगा. हम उसे इम्तहान देने से नहीं रोक सकते." "नहीं" दुसरे ने प्रतिवाद किया. "सारे कमरे भरे हुए हैं."

"जो भी हो हमें उसके लिए ख़ास इंतज़ाम करने होंगे. वह राजकुमार वाई का करीबी है. वरना इतनी रात को वह अपना कार्ड देकर इसे यहाँ क्यों भेजते? हमें जल्द उसके वास्ते एक कमरा ख़ाली करना होगा. ऐसा तो हर हाल में करना होगा. चाहे हमें रात भर बाहर रहना पड़े." झांग हाओगु को भीतर बुला लिया गया. कुछ समय सोचने के बाद दोनों परीक्षक यह तय करने में जुट गए कि उन्हें करना क्या है.

एक बोला: "चलो उसे परचा दे दें."

"नहीं" दूसरा बोला."हमें तो ये भी नहीं मालूम कि इस ने कौन सी किताबें पढी हैं. मान लिया हमारे सवालों का यह सही जवाब न दे सका तो फ़ेल हो जाएगा और राजकुमार नाराज़ हो जाएंगे."

"तो क्या किया जाए."

"ऐसा करते हैं कि उसका परचा हम ही लिख देते हैं. मैं उत्तर बोलता हूम तुम लिखते जाओ."

सो उन्होंने झांग हाओगु का परचा पूरा किया. फिर उन्होंने सोचा - "अगर हम उसे अव्वल स्थान दे देते हैं तो यह कुछ ज़्यादा ही ज़ाहिर हो जाएगा. दूसरा स्थान देना उचित रहेगा."

इस तरह बिना एक भी शब्द लिखे झांग हाओगु ने दूसरा स्थान पा लिया.

दो दिन बाद सारे सफल परीक्षार्थी दोनों परीक्षकों को धन्यवाद देने पहुंचे. लेकिन झांग हाओगु नहीं आया. उसे इस तरह के किसी प्रोटोकॉल की जानकारी नहीं थी.

दोनों परीक्षक सोच में पड़ गए. एक बोला - "ऐसा लगता है झांग हाओगु को नियमों की जानकारी नहीं है. हालांकि वह राजकुमार वाई का रिश्तेदार है लेकिन अगर हमने उसकी मदद न की होती तो वह दूसरे नम्बर पर कभी नहीं आ सकता था.यह कोई उचित बात तो नहीं लगती कि वह हमें धन्यवाद देने तक नहीं आया." "खैर छोड़ो हम तो यह सब राजकुमार केलिए कर रहे हैं. उन्होंने ही झांग हाओगु को आधी रात अपने कार्ड के साथ भेजा था. झांग हाओगु अवश्य कोई रिश्तेदार होगा या काफ़ी नज़दीकी दोस्त. जब वह बड़ा अफ़सर बन जाएगा हमें उसकी ज़रूरत पड़ेगी. सो हमें बुरा मानने के बजाय ख़ुद उससे मिलने जाना चाहिए."

झांग हाओगु के पास पहुंच कर दोनों परीक्षक उस से बोले - " अगर उस रात आप राजकुमार का कार्ड लेकर नहीं आते तो आपको इम्तहान में बैठने नहीं दिया जाता." उनका मन्तव्य न समझते हुए झांग हाओगु ने कुछ अनर्गल सा जवाब दिया. उनके जाने के बाद उसे बतलाया गया कि राजकुमार वाई असल में कौन है. तब जा कर उसकी समझ में सारी बात आई. उसने राजकुमार वाई के पास पहुंच कर उसे धन्यवाद देना तय किया. उसने बहुट सारे महंगे उपहार खरीदे और वाई के दरवाज़े पर पहरेदार को अपना कार्ड और उपहारों की सूची प्रस्तुत की. वाई ने झांग हाओगु का नाम कभी सुना तक नहीं था और वह उस से मिलना भी नहीं चाहता था लेकिन चूंकि उपहारों की सूची ख़ासी प्रभावशाली थी उसने झांग हाओगु को भीतर बुलवा लिया. झांग हाओगु ने वाई से कहा - "अगर उस दिन आप मुझे अपना कार्ड न देते तो मैं इम्तहान में नहीं बैठ सकता था. यह आपका अहसान था कि मैं दूसरे स्थान पर आया हूं. मैं दिल से आपका धन्यवाद करता हूं."

"ओह! यह तो वा़कई ख़ासा पढ़ा-लिखा आदमी निकला!" वाई ने सोचा. "इसी लिए यह उस रात इस तरह बात कर रहा था.आगे जब मैं राजा बन जाऊंगा यह मेरे काम आने वाला है.." वाई ने अपने सेवकों से झांग हाओगु की शान में एक आलीशान भोज तैयार करने को कहा. झांग हाओगु के खूब खा-पी चुकने के बाद वाई उसे छोड़ने बाकायदा दरवाज़े तक आया. यह समाचार जल्द ही समूचे बीजिंग में फैल गया और अफ़सरान में खलबली मच गई.

उन्होंने आपस में कहा - "जब हम राजकुमार के पास गए थे हमें तो वे छोड़ने दरवाज़े तक नहीं आए थे. और झांग हाओगु जैसे नौसिखिए के साथ ऐसा दोस्ताना सुलूक किया गया. अवश्य ही वह या तो राजकुमार का रिश्तेदार है या निकट का दोस्त." "जब वे दोनों दरवाज़े पर थे राजकुमार झांग हाओगु के साथ काफ़ी इज़्ज़त से पेश आ रहे थे. हो सकता है झांग हाओगु राजकुमार का सीनियर हो." "अगर वह इतना ही वरिष्ठ है तो हमें मिलकर सम्राट से सिफ़ारिश करनी चाहिये कि झांग हाओगु को कोई बड़ा पद दिया जाए. आगे जा कर वह हमारी मदद ही करेगा."

(कहानी का समापन कल. कहीं जाना पड़ रहा है अभी. एक इमरजेन्सी आन पड़ी है.)

4 comments:

Neeraj said...

हाहा , झांग भाईसाहब तो मजे मजे में टॉपर में आ गए |

मूर्खता से बहुत कुछ मिल सकता है |

डॉ. नूतन डिमरी गैरोला- नीति said...

मूर्खता तो बुद्धिमान लोग कर रहे है.. झांग तो सीधे सपाट चल रहा है.. और आगे बड रहा है तथाकथित बुद्धिमानों की मूर्खता से ... कहानी के अग्रिम हिस्से की इंतजारी ..

Patali-The-Village said...

झांग भाईसाहब तो मजे मजे में टॉपर में आ गए |कहानी के अग्रिम हिस्से की इंतजारी|

एस एम् मासूम said...

maza aa geya