Thursday, February 24, 2011

इनाना

ईराक़ी कवयित्री दून्या मिखाइल की एक और कविता पढ़िये:



इनाना

मैं इनाना हूं.
और यह मेरा शहर है.
और यह हमारी मुलाक़ात है
गोल, लाल और भरपूर.
यहां, कुछ समय पहले
कोई गुहार लगा रहा था मदद के लिए
अपनी मौत से ज़रा पहले.
मकान यहां तब भी थे
अपनी छतों
लोगों
और खजूर के पेड़ों के साथ.
मेरे देश में किसी विदेशी की तरह
अपना सर कलम किए जाने से ज़रा पहले
मेरे कानों में कुछ फुसफुसाना चाहते थे
खजूर के पेड़ .
मैं टीवी पर देखती हूं
अपने पुराने पड़ोसियों को
बचकर भागते हुए
बमों
साइरनों
और अबू अल-तुबार से.
मैं देखती हूं
अपने नए पड़ोसियों को
फ़ुटपाथ पर भागते हुए
सुबह की अपनी वर्ज़िश के दौरान.
मैं यहां हूं
कम्प्यूटर और माउस
के बीच के सम्बन्ध के बारे में सोचती हुई.
मैं तुम्हें खोजती हूं इन्टरनैट पर.
मैं चीन्हती हूं तुम्हें
कब्र-दर-कब्र
खोपड़ी-दर-खोपड़ी
हड्डी-दर-हड्डी.
मैं तुम्हें
अपने ख़्वाब में देखती हूं.
मैं देखती हूं
पुरातन चीज़ों को
टूटा
और बिखरा
संग्रहालय में.
मेरा हार उनमें है
मैं चीखती हूं तुम पर:
तमीज़ से रहना सीखो, तुम मृतकों के पुत्रो!
मेरे कपड़ों और सोने के लिए
लड़ना बन्द करो!
तुम किस कदर खलल डालते हो मेरी नींद में
और मेरे देश से डरा कर भगा देते हो
चुम्बनों के एक रेवड़ को!
तुमने रोपे अनार के पेड़ और क़ैदख़ाने
गोल, लाल और भरपूर.
ये मेरी पोशाक में तुम्हारे छेद हैं.
और यह हमारी मुलाक़ात है ...

(इनाना: प्रेम, उपजाऊपन, जन्म और युद्ध की सुमेरियाई देवी. मानव इतिहास में दर्ज़ पहली देवी
अबू-अल-तुबार: १९७० के दशक में बग़दाद में एक क्रूर सीरियल किलर, जो बाद में बाथिस्ट शासन का छोड़ा गया गुर्गा निकला.)

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

these foot notes are essential. thnx fo' the poem.

abcd said...

completely agree with munish ji...
and
these footnotes are captivating and engaging .
and
the photograph--mesmerizing !
.......y such photographs are more influential when in black and white ??
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गुर्गा shabd bahut dino baad sun-ne ko mila :-)

अरुण अवध said...

युद्ध की विभीषिका से उपजी मनःस्थिति का
मार्मिक चित्रण !
कैसे संवेदनाएं बदल जाती है ,
सोंच बदल जाती है ................
अच्छी असरदार कविता !
धन्यवाद !