Sunday, April 24, 2011

भूख के राज्य में पृथ्वी गद्यमय है - सुकान्त की कविता बरास्ते नीलाभ -२

पारपत्र

जिस बच्चे ने जन्म लिया है आज रात
उसी के मुँह से मिली है ख़बर,
उसे मिला है एक पारपत्र
नये विश्व के द्वार पर।
इसीलिए जताती है अधिकार
जन्म लेते ही उसकी चीख़-पुकार।
नन्हीं-सी देह, असहाय फिर भी उसके हाथों की बँधी हुई मुट्ठियाँ
तनी हुई हैं जाने कौन-सी दुर्बोध प्रतिज्ञा में।

उस भाषा को कोई नहीं समझता
कोई हँसता है, कोई देता है मीठी झिड़की।
मैं लेकिन मन-ही-मन समझ रहा हूँ उसकी भाषा।
पायी है उसने आने वाले युग की नयी चिट्ठी -
पढ़ता हूँ नये जन्मे बच्चे का परिचय-पत्र,
उसकी अस्पष्ट धुन्ध-भरी आँखों में।

आया है नया मेहमान
जिसके लिए छोड़ना होगा स्थान।
चले जाना होगा हमें
पुरानी पृथ्वी के व्यर्थ, मरे हुए और नष्ट ढेर पर। चला जाऊँगा -
फिर भी जब तक हैं देह में प्राण
जी-जान से हटाता रहूँगा पृथ्वी का जंजाल
बना जाऊँगा दुनिया को इस बच्चे के रहने योग्य
नये जन्मे के प्रति यह है मेरी दृढ़ प्रतिज्ञा
अन्त में सब काम निपटा कर
अपनी देह के रक्त से नये शिशु को
दे जाऊँगा आशीर्वाद।

तब बनूँगा इतिहास


हे महाजीवन

हे महाजीवन, अब और यह कविता नहीं।
इस बार कठिन, कठोर गद्य लाओ।
मिट जाये पद्य-लालित्य की झंकार।
गद्य के कठोर हथौड़े से आज करो चोट।
चाहिए नहीं आज कविता की स्निग्धता।

कविता आज तुझे छुट्टी दी।

भूख के राज्य में पृथ्वी गद्यमय है।
पूर्णिमा का चाँद जैसे झुलसी हुई रोटी है।

(ये सभी अनुवाद नीलाभ ने मूल बांग्ला से किए हैं)

5 comments:

बाबुषा said...

purnima chand jeno jhalsano ruti !

मज़ा आ गया !

बाबुषा said...

'हे महाजीवन ' बहुत बहुत बहुत सुन्दर कविता है !

प्रवीण पाण्डेय said...

आने वालों को स्थान देती, जाने वालों की दुनिया।

प्रज्ञा पांडेय said...

achchi bahut achchi !

अरुण अवध said...

प्रभावशाली रचनाएँ !