Saturday, May 28, 2011

सचमुच किसी भी और देश से बेहतर है जीना स्वर्ग में


स्वर्ग से रपट

ज़्बिग्नियू हेर्बेर्त

स्वर्ग में हफ़्ते में तीस घन्टे नियत हैं काम के
तन्ख़्वाहें ऊंची हैं कीमतें लगातार घटती जाती हैं
शारीरिक श्रम थकाता नहीं (कम गुरुत्व के कारण)
लकड़ी फाड़ने में टाइप करने से ज़्यादा मेहनत नहीं लगती
सामाजिक पद्धति सुस्थिर है और बुद्धिमान हैं शासक
सचमुच किसी भी और देश से बेहतर है जीना स्वर्ग में

शुरू में इसे फ़र्क होना था
चमकीले आभामण्डल और अमूर्तन के स्तर
लेकिन वे ठीकठीक अलग नहीं कर सके
आत्मा को उसके शरीर से सो वह यहां पहुंची
चर्बी की एक बूंद और मांसपेशी के एक धागे के साथ
ज़रूरी था इसके परिणामों से रू-ब-रू होना
परम के एक कण में मिलाना मिट्टी का एक कण
सिद्धान्त से एक और प्रस्थान, आख़िरी प्रस्थान
जिसे सिर्फ़ जॉन ने पहले देख लिया था - देह में ही होगा तुम्हारा मोक्ष

बहुत कम लोग ईश्वर को देख पाते हैं
वह उन लोगों के लिए है जिनमें १०० फ़ीसदी आत्मा होती है
बाकी लोग सुनते हैं चमत्कारों और बाढ़ों के बारे में विज्ञप्तियों को
किसी दिन हर कोई देखेगा ईश्वर को
ऐसा कब होगा कोई नहीं जानता

फ़िलहाल हर शनिवार दोपहर को
मिठास के साथ बजते हैं साइरन
और फ़ैक्ट्रियों से पहुंचते हैं दिव्य श्रमिकों तक
अपनी बांहों के नीचे अटपटे ढंग से दबाए वे लादे चलते हैं अपने पंख वायोलिनों की तरह.

4 comments:

अजेय said...

विचारोत्तेजक. किसी दिन हर कोई देखेगा ईश्वर को ...... वह दिन नहीं आ सकता. क्यों कि ज्यों ज्यों भीड़ ईश्वर को देखती जाती है, उसे ईश्वर मानने से इंकार करती जाती है. .....

Tinder Post said...

I agree with Ajey ji. There is a saying in English, "The more we know, the more we feel our ignorance."

प्रवीण पाण्डेय said...

माना स्वर्ग कहीं पर होगा,
मानो आज यहीं पर होगा।

love verma said...

good thought