Monday, May 30, 2011

गाब्रीएल गार्सीया मारकेज़ का परिवार - ३

(पिछली पोस्ट से आगे)


तुम्हारा कौन सा स्त्री-पात्र उन जैसा है?

‘क्रोनिकल ऑफ़ अ डैथ फोरटोल्ड’ तक मेरा कोई भी पात्र उन पर आधारित नहीं था. ‘वन हंड्रेड ईयर्स ऑफ़ सोलिड्यूड’ की उर्सुला इगुआरान में उनके चरित्र के कुछ हिस्से हैं पर उर्सुला और भी कई स्त्रियों से बनी हैं जिन्हें मैंने जाना है. सच तो यह है कि उर्सुला मेरे लिये इस लिहाज़ से एक आदर्श स्त्री है कि उसमें वे सारी बातें हैं जो मेरे हिसाब से एक स्त्री में होनी चाहिये. आश्चर्य की बात यह है कि इसका बिल्कुल विपरीत सच है. जैसे-जैसे मेरी मां बूढ़ी होती जा रही हैं वे उर्सुला की उस विराट छवि जैसी बनती जा रही हैं और उनका व्यक्तित्व उसी दिशा में बढ़ रहा है. इस कारण ‘क्रोनिकल ऑफ़ अ डैथ फोरटोल्ड’ में उनका प्रकट होना उर्सुला के पात्र का दोहराव लग सकता है पर ऐसा नहीं है. यह पात्र मेरी मां की मेरी इमेज का ईमानदार चित्र है और इसीलिये उसका नाम भी वही है. उस पात्र के बारे में उन्होंने एक ही बात कही जब उन्होंने देखा कि मैंने उनका दूसरा नाम, सांटियागा, इस्तेमाल किया है. "हे ईश्वर" वे बोलीं "मैंने पूरी जि़न्दगी इस भयानक नाम को छिपाने की कोशिश में बिताई है और अब यह सारी दुनिया में तमाम भाषाओं में फैल जाएगा."

तुम कभी भी अपने पिता के बारे में बात नहीं करते. उनकी क्या स्मृतियां हैं तुम्हारे पास? अब तुम उन्हें कैसे देखते हो?

जब मैं तैंतीस साल का हुआ तो मुझे अचानक अहसास हुआ कि मेरे पिताजी भी इतने ही सालों के थे जब मैंने उन्हें अपने नाना-नानी के घर में पहली बार देखा था. मुझे यह बात अच्छी तरह याद है क्योंकि उस दिन उनका जन्मदिन था और किसी ने उनसे कहा, "अब तुम्हारे उम्र ईसामसीह जितनी हो गई है." सफ़ेद ड्रिल सूट और स्ट्रा बोटर पहने हुए वे छरहरे, गहरी रंगत वाले एक बुद्धिमान और दोस्ताना व्यक्ति थे. तीस के दशक के एक आदर्श कैरिबियाई ‘जैन्टलमैन’. मजे़ की बात यह है कि हालांकि अब वे अस्सी के हैं और काफी ठीकठाक हालत में हैं, मैं अब भी उन्हें वैसा नहीं देखता जैसे वे अब हैं बल्कि वे हमेशा मुझे वैसे ही दिखते हैं जैसा उन्हें मैंने पहली बार अपने नाना जी के घर में देखा था. हाल ही में उन्होंने अपने एक दोस्त से कहा था कि मैं सोचता था कि मैं शायद उन मुर्गियों में से था जो बिना किसी भी मुर्गे की मदद से पैदा हो जाती हैं. उन्होंने यह बात मज़ाक में कही थी. उनका परिष्कृत ‘ह्यूमर’ शायद थोड़ी सी उलाहना से भी भरा था क्योंकि मैं हमेशा अपनी मां के साथ अपने संबंधों के बारे में बात करता हूं - उनके साथ कभी-कभार ही. वे सही भी हैं. लेकिन मैं उनके बारे में बात इसलिये नहीं करता क्योंकि असल में मैं उन्हें जानता ही नहीं, कम से कम उतना तो नहीं जानता जितना मां को जानता हूं. ऐसा अब जाकर हुआ है जब हम दोनों करीब-करीब एक ही उम्र के हैं (जैसा मैं कभी-कभी उनसे कहता भी हूं) कि हमारे बीच शांत समझदारी का एक बिंदु आया है. मैं इसके बारे में बता सकता हूं शायद. जब आठ की उम्र में मैं अपने माता-पिता के साथ रहने गया था मेरे भीतर पहले ही से पिता की एक मजबूत छवि बन चुकी थी - मेरे नानाजी की, न सिर्फ़ मेरे पिता मेरे नानाजी जैसे नहीं थे वे उनके बिल्कुल उलटे थे. उनका व्यक्तित्व, अधिकार के बारे में उनके विचार और बच्चों के साथ उनका संबंध - सब कुछ बिल्कुल भिन्न था. यह बिल्कुल मुमकिन है कि उस उम्र में मैं अचानक आये उस परिवर्तन से प्रभावित हुआ होऊं और इसी कारण किशोरावस्था तक मुझे अपना संबंध उनके साथ बहुत मुश्किल लगने लगा हो. मुख्यतः ग़लती मेरी थी. उनके साथ कैसे व्यवहार किया जाये मुझे निश्चित कभी पता नहीं होता था. मुझे नहीं पता था उन्हें ख़ुश कैसे किया जाय और उनके कठोर स्वभाव को मैंने ग़लती से समझदारी की कमी समझ लिया था. इसके बावजूद मेरे विचार से हमने इस संबंध को ठीक-ठाक निभा लिया क्योंकि हमारे बीच कोई गंभीर झगड़ा कभी नहीं हुआ.

दूसरी तरफ़, साहित्य के प्रति मेरी रुचि के लिए मैं बहुत सीमा तक उनका आभारी हूं. अपनी युवावस्था में वे कविताएं लिखा करते थे, और हमेशा छुप कर नहीं; और जब आराकाटाका में टेलीग्राफ़ आपरेटर थे वे वायलिन बजाया करते थे. उन्हें साहित्य सदा पसंद आया है और वे बढि़या पाठक हैं. जब हम उनके घर जाते हैं हमें कभी नहीं पूछना होता कि वे कहां होंगे क्योंकि हमें पता होता है कि वे अपने शयनकक्ष में कोई किताब पढ़ रहे होंगे. उस पागल घर में वही इकलौती शांत जगह है. आपको कभी पक्का पता नहीं होता कि खाने पर कितने लोग होंगे क्योंकि वहां अपनी-अपनी दुनिया में व्यस्त असंख्य बच्चों, पोते-पोतियों, भतीजे-भतीजियों की बढ़ती-घटती जनसंख्या का आवागमन लगा रहता है. पिताजी को जो मिलता है, उसे पढ़ते हैं - श्रेष्ठ साहित्य, अख़बार-पत्रिकाएं, विज्ञापनों के हैण्डआउट, रेफ़्रीजरेटर की मैनुअल - कुछ भी. मुझे और कोई नहीं मिला जिसे साहित्य के कीड़े ने इस कदर काटा हो. बाक़ी की बातों के हिसाब से देखें तो उन्होंने अल्कोहल की एक बूंद नहीं पी, न सिगरेट पी लेकिन उनके सोलह वैध बच्चे हुए और भगवान जाने कितने और. आज भी वे मेरी जानकारी में सबसे फु़र्तीले और स्वस्थ अस्सी वर्षीय व्यक्ति हैं और ऐसा लगता नहीं कि उनका तौर-तरीक़ा बदलेगा - बल्कि ठीक उल्टा ही सच है.


(जारी)

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