Friday, May 27, 2011

ज़्बिग्नियू हेर्बेर्त की दो और कविताएं


१. पागल औरत

उसकी जलती निगाह मुझे किसी आलिंगन की तरह बांधे रहती है.
वह सपनों में मिलाए हुए शब्द बड़बड़ा रही है.
वह मुझे पास बुलाती है.
तुम ख़ुश होओगे अगर तुम यक़ीन करोगे
और हांक ले जाओगे अपनी गाड़ी को एक सितारे तलक.
बादलों को अपना दूध पिलाते समय वह भली होती है;
लेकिन जब शान्ति उसे छोड़कर चली जाती है,
वह समुन्दर किनारे भागा करती है
और हवा में लहराती है अपनी बांहें.

उसकी आंखों में प्रतिविम्बित होते मुझे दिखाई पड़ते हैं दो फ़रिश्ते -
उड़ी रंगत वाला, अनिष्टकारी फ़रिश्ता विडम्बना का,
प्रेम करने वाला स्कित्ज़ोफ्रेनिया का फ़रिश्ता.

२. नन्हा क़स्बा

दिन के वक़्त फल होते हैं और समुन्दर,
रात के वक़्त सितारे और समुन्दर.
दि फ़ियोरी स्ट्रीट चेरी के रंगों का एक शंकु है.
दोपहर.
हरी छायादार जगहों पर अपनी सफ़ेद छड़ी पटकता है सूरज.
सदाबहार के एक बग़ीचे में बैल गाते हैं छायाओं के लिए एक गीत. उ
स पल मैंने फ़ैसला किया था अपने प्यार का इज़हार करने का.
समुन्दर थामे रहता है अपनी शान्ति
और नन्हा क़स्बा फूलता जाता है अंजीर बेच रही लड़की की छाती की तरह.

No comments: