Tuesday, January 31, 2012

कातिक के कूकुर थोरे थोरे गुर्रात

संजय चतुर्वेदी की कुछेक कंटीली कविताएँ आप यहाँ पहले पढ़ चुके हैं. आज फिर उन्ही को लगाने का मन हुआ -


अलपकाल बिद्या सब आई

ऎसी परगति निज कुल घालक
काले धन के मार बजीफा हम कल्चर के पालक
एक सखी सतगुरु पै थूकै एक बनी संचालक
अलपकाल बिद्या सब आई बीर भए सब बालक

कलासूरमा सदायश: प्रार्थी

कातिक के कूकुर थोरे थोरे गुर्रात
थोरे थोरे घिघियात फँसे आदिम बिधान में.
थोरे हुसियार थोरे थोरे लाचार
थोरे थोरे चिड़िमार सैन मारत जहान में.
कोऊ भए बागी कोऊ कोऊ अनुरागी
कोऊ घायल बैरागी करामाती खैंचतान में
जैसी महान टुच्ची बासना के मैया बाप
सोई गुन आत भए अगली सन्तान में.

कालियनाग जमुनजल भोगै

ऊधौ कवि कुटैम के लीन
आलोचक हैं अति कुटैम के खेंचत तार महीन
कबिता रोय पाठ बिनसै साहित्य भए स्रीहीन
चिट फंडन के मार बजीफा करें क्रान्ति रंगीन
कालियनाग जमुनजल भोगै खुदई बजाबै बीन.

3 comments:

मुनीश ( munish ) said...

क्या तौ कै रैये हो भैय्या । अद्भुत, जड़ता से परे , अतींद्रिय कविताएँ ।

मुनीश ( munish ) said...

@चिट फंडन के मार बजीफा करें क्रान्ति रंगीन
कालियनाग जमुनजल भोगै खुदई बजाबै बीन.
एक तो आपके यहाँ गाली-गुफ्तार की मनाही है वरना उन.............आलोचकों को मन भर की देता जिन्होंने जे बात हमसे छुपाई ।

मुनीश ( munish ) said...

ॅ@जैसी महान टुच्ची बासना के मैया बाप
सोई गुन आत भए अगली सन्तान में.

ये तो अल्टीमेट है सर जी , मैंक्या थंडरबोल्ट पोयट्री । गज़ब ।