Thursday, January 31, 2013

अपने उस आप को कैसे समझाऊँ



अपने उस आप को

- लाल्टू

अपने उस आप को कैसे समझाऊँ
हर निषिद्ध पेय उतारना चाहता कंठ में

हर आँगन के कोने में रख आता प्यार की सीढ़ी
बो आता घने नीले आस्मान में उगने वाले बादलों के पेड़
जंगली भैंसें, मदमत्त हाथी
सबके सामने खड़ा चाहता महुआ की महक

हर वर्जित उत्तरीय ओढ़ता
सपने भी वही जिनके खिलाफ संविधान में कानून
बीच सड़क उड़ती गाड़ियाँ रोक
चाहता दुःख, चाहता पृथ्वी भर का दुःख
कहता सारे सुख ले लो
ओ सुखी लोगो, बच्चों को उनकी कहानियाँ दे दो

अपने उस आप को कैसे समझाऊँ
मृत्यु स्वयं भी सामने आ जाए तो पढ़ता कविता
चीख चीख कर रोता
राष्ट्रपति कलाम के भाषण दौरान

जब हर कोई मस्त उड़ रहा नशे में
बच्चों को बाँसुरी की धुन पर ले जाता दूर

अपने उस आप को कैसे समझाऊँ

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