Saturday, January 18, 2014

टिम टिम रास्तों के अक्स - संजय व्यास को बधाई दीजिये

प्रिय  भाई और जोधपुर में रहने वाले श्रेष्ठ कबाड़ी संजय व्यास की किताब जल्द ही छप कर आ रही है. यह सूचना देते हुए मुझे बहुत खुशी और संतोष हो रहा है. संजय भाई को बधाई और किताब की सफलता के लिए शुभकामनाएं.


हिन्द युग्म प्रकाशन से ब्लॉग पर पोस्ट हुई गद्य रचनाओं का किताब के रूप में संग्रह 'टिम टिम रास्तों के अक्स' आने ही वाला है.किताब की ऑनलाइन बुकिंग व खरीद के लिंक्स ये रहे -

http://www.infibeam.com/Books/tim-tim-raston-ke-aks-hindi-sanjay-vyas/9789381394694.html (मात्र रु 76 में, कैश ऑन डिलीवरी सुविधा के साथ)

@Ebay: http://www.ebay.in/itm/Tim-Tim-Raston-Ke-Aks-PRE-ORDER-by-Sanjay-Vyas-/261366726447 (मात्र रु 67 में, घर मँगाने का कोई भी अतिरिक्त खर्च नहीं)

@BookAdda: http://www.bookadda.com/books/raston-sanjay-vyas-9381394695-9789381394694 (मात्र रु 69 में, कैश ऑन डिलीवरी सुविधा के साथ)
@Snapdeal: http://www.snapdeal.com/product/tim-tim-raston-ke-aks/1424555654(मात्र रु 95 में, कैश ऑन डिलीवरी सुविधा के साथ, यहाँ से प्रीबुक्ड प्रतियों पर संजय व्यक्तिगत संदेश भी लिखेंगे)

4 comments:

मुनीश ( munish ) said...

संजय जी आपको बधाई । आपने किताब का कवर अच्छा चुना है एकदम से गुज़रे ज़माने में ले जाता है । इस तरह के स्विच हुआ करते थे पहले और आज भी हैं कई जगहों पर । ये स्विच बहुत आवाज़ करते थे फिर भी लोग इन पर नाज़ करते थे जैसे कुछ लोग आप पार्टी पर किया करते थे गुज़िश्ता दिनों ।

sanjay vyas said...

शुक्रिया मुनीश जी.किताब के कवर के बारे में कुछ ऐसा ही कहने की कोशिश की थी फेसबुक पर,इसलिए आपने जो कहा बहुत अच्छा लगा.

फेसबुक पर मित्रों से जो साझा किया था,यहाँ भी शेयर कर रहा हूँ..

"क्या आपको अभी भी बिजली के पुराने बैकेलाईट के स्विच याद हैं?एक 'कट' की आवाज़ से इन विंटेज स्विच को ऑन करने पर पीली मद्धिम आभा से कमरा रौशन हो उठता था.उस दीप्ति में ढिबरी के प्रकाश से ज्यादा आश्वस्ति थी.उस दुबले उजाले में चौंध की बेचैनी नहीं थी.वो कमरे की चीज़ों को जस का तस बने रहने का अवकाश देता था.उस प्रकाश में बिजली के काले 'खटके'एक मज़बूत आधार की तरह दिखते थे.वे सुन्दर नहीं थे पर उनका अपना सौन्दर्य था.

मेरी इस किताब के आवरण में पूजा उपाध्याय के चित्र का इस्तेमाल किया गया है.मेरा और शैलेश जी का मानना है कि इसने किताब के मूल स्वर को बेहतरीन तरीके से रूपायित किया है.तमाम दोस्तों से मेरी बात हुई है और सभी का मानना है कि किताब का कवर शानदार है.इसके लिए पूजा जी के साथ विजेंद्र जी जिन्होंने इस कवर का कला निर्देशन किया है,साधुवाद के पात्र हैं."

पुनः शुक्रिया.कबाड़ खाना का आभार, इसे जगह देने के लिए.

Pratibha Katiyar said...

Badhai!

अजेय said...

संजय व्यास को बधाई