Saturday, February 28, 2015

पिछली रात के घोंघे के भीतर से गायब हो गए समुद्र

ज्ञानरंजन के साथ प्रशांत चक्रबर्ती

प्रशांत चक्रबर्ती की तीन और छोटी कविताएं पेश हैं -

पीढ़ियाँ


एक नई पीढ़ी है
चकमक से आग
जैसे कीचड़ से एक पिल्ले का जन्म
अधबने होते हैं वे  
जब नक्षत्र रचते हैं उन्हें 

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कौन बनता है हमें नरभेड़िया?

जादूगरनियां?
पिशाच?
अनुवांशिकी?
पाप?

जवाब है चंद्रमा  

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कैमियो*

पुराने वक्त की, झागदार चट्टानी संरचनाएं
पूर्वनिश्चित अभिलेख-पट्टिकाएं
पिछली रात के घोंघे के भीतर से गायब हो गए समुद्र
अतिकाय किनारे वृक्षों के ठूंठ
अदृश्य पानी को खींच लेने वाली जड़ें
चूने में उकेरी गयी मछलियाँ

खिचड़ाए बालों वाले दो इंसान –
छवियाँ,
अनकहे अपराध,
सन्नाटा ...


(*अंगूठी या जड़ाऊ पिन जैसी चीज़ों में लगने वाले पच्चीकारी किया गया नगीना)

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प्रतीक्षा पाण्डेय ने आग्रह किया है कि मैं इन कविताओं के मूल संस्करण भी यहाँ लगाऊँ. सो -


Generations

Fire from flint
Is a new generation
Like birth of a puppy from slime
Stars produce them Imperfect

What makes us Werewolves?

Witches?
Demons?
Heredity?
Sin?
The moon it is.

Cameo

Previous, foamy rock formations
Foregone tablets
Vanished seas within last night’s shells
Outsized shoreline tree boles
Roots that suck water unseen
Fishes etched in lime
Two grizzled humans: images, untold crimes, silence... 

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