Saturday, February 27, 2016

तालाबों में पानी सूखा बोतल मिलें पचासी


बदली नहीं उदासी

-संजय चतुर्वेदी

कविता कहाँ दशक की दासी,
अस्सी-नब्बे क्या देखै जनगण की देख उदासी 
वोट हमारा राज किसी का ठगे देश के वासी 
परिवारों के हित की ख़ातिर कौम चढ़ गई फांसी 
काबिज़ हुए दबंग व्याख्या स्वयं हुई मीरासी 
संविधान मातहत न्याय को बना दिया चपरासी
तालाबों में पानी सूखा बोतल मिलें पचासी 
गिरवी हुए किसान लोकसंघर्ष हुए सन्यासी 
संसाधन की लूट व्यवस्था निश्चित करै निकासी 
मालगुज़ारी मार मसीहा दूर देश मधुमासी
पिछलग्गू विचारधारा की कढ़ी हो गई बासी
सदी बदलती क्या देखै जब बदली नहीं उदासी

(2015)

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