Saturday, December 31, 2016

यूं कहा मैं कि यह बटुआ ज़रा हमको दीजे


बटुआ
-नज़ीर अकबराबादी

1.

देख तेरा यह झमकता हुआ ऐ जां! बटुआ
सुबह ने फेंक दिया मेहर का रख़्शां बटुआ

चांदनी में तेरे बटुए के मुक़ाबिल होने
बनके निकला है फ़लक पर महेताबां बटुआ

गर चमन में तुझे बटुए की तलब हो तो वहीं
ज़र भरा गुन्चे का लादें गुलेख़न्दां बटुआ

हाथ नाजुक हैं तेरे और वह हैं संगीं वरना
बनके आ जावे अभी लाल बदख़्शां बटुआ

यूं कहा मैं कि यह बटुआ ज़रा हमको दीजे
हम भी बनवाऐंगे ऐसा ही दुरख़शां बटुआ

सुनके बटुए को दिखाकर यह कहा वाह रे शऊर
अरे बन सकता है ऐसा कोई अब याँ बटुआ

जब कहा मैंने सबब क्या तो हँस के "नज़ीर"
यह तो लायी हैं मेरे वास्ते परियां बटुआ

(रख़्शां=प्रकाशमान, महेताबां=चाँद, दुरख़्शां= प्रकाशमान)

2.

तुम्हारे हाथ से होता नहीं एक दम जुदा बटुआ
यह किस उल्फ़त भरी ने सच कहो तुमको दिया बटुआ

घड़ी गुन्चा घड़ी गुल, फिर घड़ी में गुल से गुंचा हो
तुम्हारे आगे क्या क्या रंग बदले है पड़ा बटुआ

तुम्हें हम चाहें तुम बटुए को चाहो क्या तमाशा है
हमारे दिल रुबा तुम और तुम्हारा दिलरुबा बटुआ

जो तुमने बदले एक बटुए के एक बोसा ही ठहराया
तो साहब याद रखियो यह हमारा है छटा बटुआ

निहायत पुरतकल्लुफ़ और बहुत खु़शकिता नाजुक सा
बसद ताकीद बनवाया था हमने एक नया बटुआ

गएए हम इत्तिफ़ाक़न उस परी रू से जो मिलने को
तो क्या कहिये वही उस दम हमारे पास था बटुआ

यकायक आ पड़ी उसकी नज़र इस पर तो ले हम से
कहा, यह तो बनाया है किसी ने वाह क्या बटुआ

बहुत तारीफ़ कीं और हंस दिया जब दिल में हम समझे
कि यह तारीफ़ कुछ ख़ाली न जावेगी चला बटुआ

कभी यूं और कभी वूं देख आखि़र यूं कहा हंस कर
यह किसका है क़यामत पुर नज़ाकत खु़शनुमा बटुआ

कहा जब मैंने हंसकर सौ नियाज़ोइज्ज़ से ऐ जां
इसे मैला न कीजिये, यह है एक महबूब का बटुआ

मैं भूले से ले आया था अगर दरकार हो तुमको
तो मैं इससे भी बेहतर और दूं तुमको मंगा बटुआ

कहा हम तो यही लेंगे, तो मैंने फिर कहा साहब
मैं बेगाना तुम्हें अब किस तरह से दूं भला बटुआ

जूं ही यह बात निकली मेरे मुंह से फिर तो झुंझलाकर
वहीं उस शोख़ ने मारा, मेरे मुंह पर उठा बटुआ

कहा मैंने खफ़ा होते हो क्यूं चाहो तुम्हीं ले लो
यह कहकर मैंने फिर उसकी तरफ ढलका दिया बटुआ

चला जब वह ढलकता उसकी जानिब देखिये शामत
कहीं नागह सरे ज़ानू मैं उसके जा लगा बटुआ

तो ले बटुए को और जानू पकड़ कर यूं कहा दुश्मन
यह तूने आपसे मारा मेरे, वारूं तेरा बटुआ

जला दूं टुकड़े कर डालूं वले तुझको न दूं हरगिज
लगा मेरे बहुत, अब तो यह मेरा हो चुका बटुआ

न बटुआ दूं "नज़ीर" और तुझसे जानू का भी बदला लूं
यही धमकी दिखाकर आखि़र उसने उसने ले लिया बटुआ


निगहतज़ो=सुगन्ध से भरपूर, सौ नियाज़ोइज्ज़=सौ बार हठ करके, बसद ताकीद=नम्र निवेदन, हरगिज=कदापि)

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