Wednesday, November 8, 2017

सबके अंदर बैठा वही गुजरात


किसी से कहना मत, ऐ गुजरात!
-          लाल्टू

1.

दिल्ली कहो तो कह देता हूँ दिल्ली
मेरठ भिवंडी भागलपुर कहो तो भी ठीक है

यह देखते कि मेरे अंदर से निकलती बू
फैल चुकी है कायनात में
यह कहते कि अपने अंदर का गुजरात पढ़ो
थक रहा हूँ
जो जानते हैं कि कौन-सी कहानी है उनको समझाता हूँ कि मैं खड़्ग सिंह बन चुका हूँ
बुलेट घोड़े पर सवार हूँ
बाबा भारती ने मुझसे मिलने से पहले खुदकुशी कर ली है
गुजारिश गूँजती है मेरे अंदर की गलियों में
ऐ गुजरातकिसी से कहना मत
नहीं तो लोग खुद पर यकीन छोड़ देंगे.

2.

सड़क पर साथ गुजरात है
डरा हुआ सा है
कि लोग पहचान लेते हैं
पास आने से पहले नाक ढँक लेते हैं
गुजरात एकबारगी खिलखिला उठता है
कि वह मेरे अंदर कब का पसरा हुआ है
उसके जरासीम समूची धरती पर हैं
हँसी अचानक रुकती है
सूरज धधक रहा है

3.

आदि मानव के वक्त से गुजरात साथ चल रहा है
खुद को मना लिया था
कि गुजरात को कहीं बक्से में बंद कर लें

थोड़ा-थोड़ा बंद किया है उसे
जैसे नाक फँसा ली है
या कि एक टाँग बक्से में अटकी है

पता नहीं कैसे टुकड़ों में निकल ही आता है
फैल जाता चारों ओर
समेट कर फिर से बक्से में डालने की कोशिश में हूँ
पूरी तरह पकड़ नहीं आता
सफाई कर्मचारियों की मदद लेता हूँ
कुछ टुकड़े छिप जाते हैं
बामौका निकल आने को.

4.

सबके अंदर बैठा
वही गुजरात
हर कोई पुलिस को इत्तला करता है
पुलिस के अंदर गुजरात है
हाशिमपुरा भूल गए?
बसों-गाड़ियों में चढ़ भागो
तो ड्राइवर और कंडक्टर गुजरात हैं
आखिरकार पैदल तेज़-कदम चलता है
खुद से भागता मेरे भीतर का गुजरात.

5.

यादें सँभालती है धरती
कितने गुजरात नहीं रहे
नींद में गुजर गए जाने कितने रंग.
रंग-बिरंगे पंछी विदा कह गए
रह गया आस्मां बेरंग.
खून में बह रही हैं अणुओं के आकार की मशीनें
तड़पतीं कि कुछ याद रहे
एक भाषा थीएक गीत था
रुनझुन संगीत था
यादों का भंडार विपुल है
मशीनें भर-भर जाती हैं
ठोंस कर भरी जाती हैं यादें
धरती हिलती है यादों के भार तले.

1 comment:

सुशील कुमार जोशी said...

क्या बैठा क्या नहीं क्या कहें क्या नहीं ? पता नहीं पर संकेत अच्छे नहीं हैं हर शय पर गुजरात हर जगह गुजरात हो गई है हम कौन सा गुजरात से बाहर हो रहे हैं। अच्छा है चुप रहें।